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श्रावक की ११वी प्रतिमा ]
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स्वामिकुमार कृत कार्तिकेयानुप्रेक्षा ग्रन्थ मे भी जो कि प्राचीन माना जाता है सिर्फ एक गाथा मे इस विपय का मामूली सा वर्णन है । परन्तु उसका रचनाकाल आशाधर से पहिले का होने मे भी सन्देह है। क्योकि उसकी एक भी गाथा आशाधर की रचनाओ मे कही उदृत नही है । जबकि आशाधर ने अन्य अनेक प्राचीन अथो के उद्धरण दिये हैं तब यह हो नही सकता कि कातिकेयानुप्रेक्षा का वे एक भी उद्धरण नहीं देते। कम से कम सागारधर्मामृत मे तो इसका उद्धरण देते ही, जबकि कातिकेयानुप्रेक्षा मे श्रावक धर्म का ८८ गाथाओ मे विवेचन पाया जाता है। अन्य प्राचीन ग्रन्थकारो के ग्रथो मे भी कही इसका उद्धरण नही देखा जाता है । न इसके कर्ता स्वामिकुमार का ही किसी प्राचीन आचार्य ने कही स्मरण किया है। इसकी टीका भी बहुत बाद की १६वी शताब्दी मे बनी है। कुन्दकुन्द समन्तभद्रादि सभी शास्त्र कारो ने जहाँ श्रावक की प्रतिमाओ के, ११ भेद लिखे हैं. वहाँ इस नन्थकी गाथा ३०४-३०५ मे १२ भेद लिखे हैं। अगर यह ग्रन्थ अधिक प्राचीन होता तो अन्य ग्रथकार इसका अनुसरण करके प्रतिमाओ के १२ भेद लिखते परन्तु १२ भेद किसी ने भी नही लिखे हैं। यह बात खास सोचने की है।
वसुनन्दि के बाद तो प्राय सभी ग्रन्थकारो ने ११ वी प्रतिमा का स्वरूप वसुनन्दि के अनुसार ही लिखा है । आशाधर ने भी इनका काफी अनुसरण किया है कुछ कथन आशाधर ने ऐसा भी लिखा है जो वसुनन्दी के द्वारा लिखने मे रह गया है। जैसे इस प्रतिमाधारी के वस्त्र सफेद रंग के होना चाहिए। ऐसा ही पुष्पदन्त ने यशोधर चरित मे लिखा है। वह है भी