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[ ★ जैन निवन्व रत्नावली भाग २
इन अमितगति के कुछ थोडे समय पूर्व ही अपनश कवि पदन्त हुए है। उन्होंने यशोधर चरित के पृ० ८५ मे क्षुल्लक का स्वरूप इस प्रकार लिखा है
ता अम्हहि लइयउ खुल्लयतु,
चत परिहण आहरण वित्तु । पंगुत्तउ पंडुरचीरखंड,
मणमु' डिवि पुणे मुंडियउ मुंड । कोवोण कमण्डलु भिक्खपत्तु,
लइयजवर भवजलजाणवत्तु ।
इसमे अल्लक के श्वेत रंग का वस्त्रखड, मुण्डन, कोपीन, कमण्डलु और शिक्षापात्र लिखा है ।
उपर्युक्त ग्रन्थकारी ने इस ११वी प्रतिमाधारी का नाम उद्दिष्ट विरत, उत्कृष्ट श्रावक और क्षुल्लक लिखा है मेधावी ने धर्मग्रह श्रावकाचार मे - अपवाद लिंगी और वानप्रस्थ भी लिखा है -
उत्कृष्ट श्रावको यः प्राक्क्षुल्लकोऽत्रैव सूचितः । स चापवादलिंगी च वानप्रस्थोऽपिनामत. ॥ [२-० अधि० ]
प्रभाचन्द्र ने रत्नकरण्ड की टीका में इसका नाम आर्य
भी लिखा है । तदनुसार आशाधर आदि ने भी आर्य नाम लिखा है | स्त्री जाति उत्कृष्ट सयम की धारिका आर्यका होती है, उसी की तुलना में पुरुष जाति में श्रावक दशा मे सयम के धारक के लिये आर्य सज्ञा दी गई प्रतीत होती है । यहाँ के