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जैन कर्म सिद्धांत
एक मुमुक्षु प्राणी के सामने ४ प्रश्न उपस्थित होते हैं१ ससार क्या है? २. ससार के कारण क्या हैं? ३. मोक्ष क्या है? ४. मोक्ष के क्या कारण है? इन्ही चारो प्रश्नो के समाधान में ७ तत्व छिपे हुए हैं और उन्ही के साथ कर्म सिद्धति भी । चेतनअचेतन पदार्थों से भरा हुआ जो स्थान है वह ससार है। इस प्रथम प्रश्न के उत्तर मे २ तत्व आते हैं- जीव और अजीव । चतुर्गतिरूप दुखमय ससार मे यह जीव कर्मों के फल से परिभ्रमण किया करता है और जब तक कर्म आ-आकार जीव के बधते रहते हैं तब तक जीवका ससार से छूटना नही हो सकता है | इस दूसरे प्रश्न के उत्तर मे आस्रव और बध ये दो तत्व आ जाते है | सव कर्मों के बन्धन से छूट जाना इसका नाम मोक्ष है । इस तीसरे प्रश्न के उत्तर में मोक्षतत्व आ जाता है। नवीन कर्मो का वन्ध नही होने देना और पुराने बधे कर्मों को खिपा देना ये दो बाते मोक्ष की कारण है, इस चौथे प्रश्न के उत्तर में सवर और निर्जरा ये दो तत्व आ जाते हैं । इस प्रकार चारों प्रश्नों के समाधान मे जीव, अजीव, आस्रव, वध, सवर, निर्जरा और मोक्ष इन ७ तत्वो की उपलब्धि होती है । इन्ही सत्यार्थ ७ तत्वो के श्रद्धान करने को जैनधर्म मे सम्यग्दर्शन ( यथार्थ दृष्टि ) कहा है । यही मोक्ष महल की प्रथम सीढ़ी है ।