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भगवान् को दिव्यध्वनि ।
अपनी वाक्य रूप अविरल जलधारा से समस्त भूमण्डल के कलंक को धो डालने वाली और जीवो के अज्ञान मुद्रित नेत्रो को ज्ञान की अंजन शलाका से खोल डालने वाली भगवती सरस्वती देवी का आविर्भाव पूज्य अर्हन्तदेव से होता है, जो निर्दोष, सर्वज्ञ और हितोपदेशी होते है. और आप्त कहलाते हैं। ऐसी आप्तता महावीर तीर्थंकर ने तीस वर्ष गृहस्थी के बाद दीक्षा लेकर बारह वर्ष की घोर तपस्या से प्राप्त की थी । भगवान् महावीर को वैशाख शुक्ला १० को मायकाल मे केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। जिसके फल स्वरूप आप्त का महानपद आप को मिल चुका था । आप्त का जो हितोपदेशी गुण है उसके प्रस्फुटित होने मे अभी देरी थी।
जिनसेन कृत हरिवश पुराण मे लिखा है किषदष्टि दिवसान भूयो, मौनेन विहरन् विभुः । आजगाम जगत्ख्यातं जिनो राजगृहं पुरम् ॥६१॥
[दूसरा सर्ग] अर्थ केवल ज्ञान के बाद वीर प्रभु ६६ दिन तक मौन से विहार करते हुये जगत् विख्यात राजगृह नगर को आये।