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ही इनकी चौडाई है । अढाई सौ योजन की नीव है । ये भी सब समवृत्त हैं और इन पर भी वन खड हैं ।
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नंदीश्वर द्वीप मे ५२ जिनालय ]
इस प्रकार एक अजनगिरि, चार दधिमुख और आठ रतिकर इन पर्वत पर मध्य मे उत्तम एक-एक रत्नमय जिन मन्दिर स्थित है। ये नदीश्वर द्वीप के पूर्वादिशावर्ती १३ जिनालय हुये। इसी तरह तेरह २ जिन मन्दिर नदीश्वरद्वीप मे शेष तीन दिशाओ मे भी है। इस प्रकार कुल ५२ अकृत्रिम जिनालय होते हैं । ये जिनालय एक सौ योजन के लम्बे, पचास योजन के चोडे, पचहत्तर योजन के ऊचे है । इनको नीव आध योजन की है। प्रत्येक जिनमन्दिर मे १०८ गर्भगृहो मे १०८ रत्नमयी प्रतिमायें विराजमान हैं । वे प्रतिमाये पाच सौ धनुष, ऊची, (यह ऊचाई बैठी प्रतिमा की है । देखो त्रिलोक प्रज्ञप्ति अधिकार ४ गाथा १८७१ और १८७७ । तथा लोक विभाग अध्याय १ श्लोक २६ । ) सिंहासन छत्रादि सयुक्त हैं । उनके नीले केश, सफेद दात, मूगे की तरह के लाल होठ व रक्तवर्ण के हस्तपादतल होते है । सब प्रतिमाये दशताल के लक्षणो से युक्त है ।
रतिकर पर्वतों की संख्या
त्रिलोक प्रज्ञप्ति के ५ वें अधिकार मे इस विषय का वर्णन करते हुये जिस गाथा मे रतिकर पर्वतो की संख्या का निर्देश किया है वह गाथा यह है
वावीण बाहिरेसु दोसु कोणेसु दोणि पत्तक्कं । रतिकरणामा गिरिणो कणयमया दहिमुह सरिच्छा ॥६७॥