________________
★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
1
२० ]
भाग २ पृष्ठ ३२८ पर भी "पूस जोइ चउ दह मइ वासरि" पाठ दिया है और टिप्पणी मे भी "पूस जोइ का अर्थ "रेवती" नक्षत्र ही किया है ।
यहाँ यह बात ध्यान मे रखने की है कि उत्तर पुराण मे सभी तीर्थंकरो के जन्म कल्याण के नक्षत्र बताते हुए नक्षत्र का नाम न लिखकर उसके स्वामी देव का नाम ही लिखा गया है ।
( २ ) नमिनाथ के सव कल्याणक अश्विनी नक्षत्र मे हुए हैं किन्तु मुद्रित उत्तर पुराण मे इनका जन्म पर्व ६६ श्लोक ३० मे 'आपाढे स्वाति योगे' अर्थात् आषाढ वद १० स्वाति नक्षत्र मे लिखा है यहाँ भी तिथि के साथ नक्षत्र का मेल वनता नही है अत यह पाठ अशुद्ध है । शुद्ध पाठ 'आषाढेऽश्विनी योगे' होना चाहिए अर्थात् 'स्वाति, की जगह अश्विनी होना चाहिए । आपाढ वद १० के साथ अश्विनी की गति बैठ जाती है । यहाँ यह शा नही करनी चाहिए कि ग्रथकार ने जन्म नक्षत्रो मे तो नक्षत्र के स्वामी देव के नाम दिये हैं फिर यहाँ अश्विनी नक्षत्र नाम कैसे दिया इसका उत्तर यह है कि अश्विनी नक्षत्र के स्वामी देव का नाम भी अश्विनी ही है ।
( ३ ) विमलनाथ का मोक्ष पर्व ५६ श्लोक ५५ मे " आषाढस्योत्तराषाढे" अर्थात् अपाढ बुदी ८ उत्तराषाढ मे लिखा है किन्तु शुद्ध पाठ " आषाढस्योत्तरा भाद्र होना चाहिए क्योकि आषाढ बुदो ८ को उत्तर भाद्रपद ही पडता है और यही नक्षत्र विमलनाथ के अन्य सव कल्याणको मे है।