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पचकल्याणक तिथियां और नक्षत्र ]
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से हुआ है। वर्ना गुणभद्र स्वामी ने जब सब की हो कल्याणक तिथिये दी है तो वे इन दो तिथियो को न दें ऐसा कैसे हो सकता है । अथवा इसका कारण यह हो कि सभवनाथ का मृगशिर नक्षत्र तो निश्चित है ही और नियमत यह नक्षत्र मगसर सुदी १५ को आता ही है अत यह तिथि विना बताये स्वत ही सिद्ध हो जाती है इस ख्याल से ग्रन्थकार ने यह तिथि नही लिखी है। अब रही मुनिसुव्रत की जन्म तिथि की वात सो ३, ५, १८, २४ इन चार तीर्थंकरो को छोडव र वाकी के तीर्थंकरो की अपनी-अपनो तप की जो तिथि है वही जन्म को तिथि है इस तरह मुनिसुव्रत की जो तप की तिथि वैशाख बुदो १० दी है वही जन्म तिथि हो जाती है इमलिए उसे अलग से नही दिया है। - इन प्रकार अशुद्ध पाठो की वजह से जो उत्तर पुराण की कुछ तिथियो मे गडबड पडी हुई थी वे तो शुद्ध करली गई किन्तु फिर भी एक चीज का हल होना वाकी रह गया कि उत्तर पुराण की कुछ एक तिथियो की सगति उनके साथ मे लिखे नक्षत्रो से नही बैठती है। नीचे हम उसी पर विवेचन करते हैं -
(१) अरनाथ के सव कल्याणक रेवती नक्षत्र में हुए है किन्तु ज्ञानपीठ से प्रकाशित उत्तरपुराण पर्व ६५ श्लोक २१"मार्गशीर्षे सिते पक्षे पुष्ययोगे चतुर्दशी," अर्थात् अरनाथ का जन्म मगसर सुदी १४ पुष्य नक्षत्र मे लिखा है यहा तिथि के साथ नक्षत्र का मेल बैठता नही है अत यह पाठ अशुद्ध है शुद्ध पाठ 'पुष्य योगे' के स्थान मे पूषयोगे' होना चाहिए तव उसका अर्थ रेवती नक्षत्र होता है क्योकि रेवती' का स्वामी देव 'पूपा' माना गया है। पुष्पदन्त कृत अपभ्र श महापुराण