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हवनकुण्ड और अग्नित्रय ]
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प्रतिष्ठा ग्रन्थ नेमिचन्द्र कृत प्रतिष्ठानिलक है ऐसा हमारा ख्याल है। यह प्रतिष्ठा तिलक विस्तृत भी लिखा गया है। प्रारम्भ मे ही इसके कर्ता ने साफ लिख दिया है कि इसका निर्माण इन्द्रनन्दि आदि को साहितामो के आधार पर किया गया है और यह वात इस प्रतिष्ठा नन्थ के अध्ययन से भी जाहिर होती है कि इसमे यत्र-तत्र आशाधर, इन्द्रनन्दि, एकसन्धि के कम्नो का काफी उपयोग किया है। उसके कर्ता नेमिचन्द्र ने जो प्रशस्ति दी है उससे इनके समय पर काफी प्रकाश पडता है। प्रशस्ति के अनुसार ये हस्तिमल्ल की कोई ११वी पीढी मे हये है। हस्तिमल्ल का समय १४वी सदी है मत इनका समय १६वी ही नहीं १७वी शताब्दि भी हो सकता है। समय की दृष्टि से यह प्रतिष्ठा ग्रन्य बहुत वाद का लिखा हुआ है इमलिये इसमे वे सभी विधिविधान पाये जा सकते हैं जिन्हे आशाधर के बाद इस विषय मे जुदे-जुदे ग्रन्थकारो ने बढाये है।
- इस प्रतिष्ठातिलक के ३ रे परिच्छेद मे हवन कुण्ट और उनमे को अग्नियो का विवरण निम्न प्रकार पाया जाता है
. "जैसे प्रतिमा के आश्रय से जिन मन्दिर पूजा जाता है वैसे ही तीर्थंकरो के सम्बन्ध से पूजनीय ऐसी गार्हपत्य अग्नि के आश्रय से जो पूजा के योग्य हुआ है ऐसे चोकोर कुण्ड को हम पूजते हैं ॥२८॥ सर्व गणधरो के सम्बन्ध से पूजनीय ऐमी आहवनीय अग्नि के आश्रय से जो पूजा के योग्य हआ है ऐसे त्रिकोण कुण्ड को हम पूजते है ॥२६॥ केवलियो के निर्वाणोत्सव मे देवेन्द्रो ने जिमकी पूजा रची है ऐसी दक्षिण दिशा की दक्षिणाग्नि का स्थान होने से जो द्विजो के पूजने योग्य हुआ है ऐसे उस गोलकुण्ड को मै जलादि से पूजता हू ॥३०॥