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द्रव्यसग्रह का कर्ता कौन ? ]
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के सुदर्शनचरित मे अपने गुरु का नाम माणिक्यनन्दी लिखते है। जब कि वसुनन्दि ने अपने श्रावकाचार की प्रशस्ति मे नयनन्दी के गुरु का नाम श्रीनन्दि लिखा है। इस सम्बन्ध मे अपने विचार हमने जैन निवन्ध रत्नावली के पृष्ठ ४१३ मे लिखे है उस स्थल को आप देखे । । आपका यह लिखना कि-"ब्रह्मदेव ने द्रव्यसग्रह अधिकार २ के प्रारम्भ मे वसुनन्दि श्रावकाचार की न० २:-२४ की २ गाथाये उद्धत करके उनकी वे उसी प्रकार से व्याख्या करते है जिम प्रकार से कि उन्होने द्रव्यसग्रह की गाथाओ की है। अत' वसुनन्दी के गुरु नेमिचन्द्रजी द्रव्यसग्रह के कर्ता होने चाहिये।" यह सव वेतुकी कल्पना है। उन दो गाथाओ मे से “परिणामिजीवमुत्त" यह एक गाथा तो मूलाचार षडावश्यक अधिकार की गाथा न० ४८वी है, और दूसरी गाथा अलबत्ता वसुनन्दि कृत हो सकती है । जा गाथा मूलाचार की है उसकी व्याख्या पचास्तिकाय पृ० ५६ मे जयसेन ने भी उसी तरह कर रक्खी है जैसी कि ब्रह्मदेव ने की है। दोनो टीकाकारो का गद्य वरावर एक समान मिल रहा है। जिसे देखकर आशका होती है कि दोनो मे से किसने किस का अनुसरण किया है। यहाँ
* यह कोई नियम नही है कि किसी उक्त च गाथा की भी साथ मे व्याख्या करने से उस गाथाकार के गुरु ही विवक्षित (व्याख्यकृत) ग्रन्थ के कर्ता हो अगर ऐसा माना जायगा तो जयसेन ने अनेक ग्रथो की टीकामो मे कुछ उक्तञ्च गाथाओ की भी साथ व्याख्या कर दी है तो क्या टीकाकृत अथ उक्त च गाथाकार के गुरु की कृतियाँ हो । जायेंगे ? अगर नही तो ऐसा नियम बनाना ठीक नही, देखिये