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द्रव्यसंग्रह का कर्त्ता कौन ? ]
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मे अपने को तनुसूत्रधर लिखा है और उसके टीकाकार ब्रह्मदेव ने उनका उल्लेख सिद्धान्तदेव के नाम से किया है । त्रिलोकसारआदिके कर्त्ता नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्री थे । न वे तनुसूत्रधर थे और न सिद्धातदेव इस तरह से दोनो नेमिचन्द्र एक नही, भिन्न- २ थे ।
(समीक्षा) द्रव्यसग्रह की तरह त्रिलोकसार की प्रशस्ति में भी ग्रन्थकार ने अपने को अल्पसूत्र का धारी बताया है । इतना ही नही और भी कथन त्रिलोकसार के कर्त्ता ने यहाँ प्राय द्रव्य' सग्रह की भांति ही किया है। दोनो के वाक्यो को देखिये
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इदि मिचन्दमुणिणा अप्पसुदेण महणदिक्च्छंण । रइयो तिलोयसारो खमंतु त बहुसुदा इरिया ||१०१८ || [त्रिलोकसार]
दध्वसंग हेमिण मुणिणाहा दोससचयचुदा सुदपुण्णा । सोधयतु तणुसुत्तधरेण णमिचन्दमुणिणा भणिय जं ॥ ५८ ॥
[ द्रव्यसंग्रह]
नेमिचन्दमुणि, सुदपुण्ण बहुसुदा, तणुसुत्तधर- अप्पसुद ।
ये शब्द दोनो मे समानार्थक है । द्रव्य संग्रह मे नेमिचन्द्र मुनि ने अपने को अल्पशास्त्र का धारी बताकर पूर्ण श्रुतज्ञा नियोसे अपनी कृति को शोधने की प्रार्थना की है। यही आशय त्रिलोकसार मे भी व्यक्त करते हुए लिखा है कि अत्पश्रुति होते हुए भी नेमिचन्द्र मुनि ने त्रिलोकसार ग्रन्थ रचा इस ढीठता के लिये बहुश्रुति आचार्य उसे क्षमा करें। इस समान कथन से यही प्रतिभासित होता है कि दोनो के कर्ता एक ही व्यक्ति हैं । ( रही सिद्धातचक्री और सिद्धातदेव की बात सो त्रिलोकसार के