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[ * जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
__ अत भूधर मिश्र ने जो ५६ कुमारियें लिखी हैं वे मानने योग्य नहीं हैं।
त्रिलोकमार गाथा ६४१ मे मानुपीत्तर पर्वत के १२ कूटों , परभी निवास करनेवाली दिक्कुमारिये बताईहैं । इनको उक्त ४४ - रूचकवासिनियो की संख्या में मिलाकर ५१ सख्या बना लेना भी उचित नहीं है । क्योकि ऐसा करने से कुलाचल वासिनी छ, प्रसिद्ध दिक्कुमारियां छूट जाती हैं और जई. को शामिल., करने पर ५६ के बजाय ६२ दिक्कुमारिय की संख्या बनती है , इस लिये खाली दिक्कुमारी नाम कर ही उन्हे ५६५ की सख्या मे शामिल करना योग्य नही है । यो तो त्रिलोकमार को गाथा ७५४ मे वक्षार पर्वतो पर भी दिक्कन्याओं का निवास बताया है । इस तरह सभी दिक्कुमारियो का नियोग जमाता की सेवा करने का मानने पर तो उनकी संख्या ५६से भी बहुत अधिक हो जायेगी इसलिये गणना मे उन्ही दैवियको लेना चाहिए जिनका नियोग जिनमाता की सेवा करने का शास्त्रो मे लिखा हो।
प्रतिष्ठाशास्त्रोमे सर्वत्र श्री ह्री आदि ८ दिक्कुमारियों के नाम मिलते है। इनमे आदि के छ नाम तो शास्त्रोक्त है और अन्त के दो नाम कल्पित है। इन ८ नामो को यदि रूचकवासिनी देवियो की संख्या में मिला दिये जायें तब भी कुल संख्या ५२ ही वनती है, ५६ नहीं । हां, अगर दिक्कुमारियो के कल्पित नाम २ की बजाय ६ लिखे होते तो ५६ सख्या हो सकती थी, पगर ६ कल्पित नाम किसी प्रतिष्ठा शास्त्र मे देखने मे अभी तक आये नही।