________________
UO
-
छप्पन दिक्कुमारिये
। आजकलके प्रतिष्ठाचार्य प्रतिष्ठा विधि मे जिन माता की सेवा ५६ दिक्कुमारियो द्वारा करवाते हैं। परन्तु कुमारियो की इस ५६ सख्या का उल्लेख दिगम्बर जैन परपरा मे तो न कहीकरणानुयोग, प्रथमानुयोग के ग्रन्थो मे देखने मे आया और न प्रतिष्ठा शास्त्रो में ही आया फिर न मालूम ये प्रतिष्ठाचार्य किस आधार पर ऐसा करते है ?
भगवान की माता के गर्भ-शोधन का कार्य श्री ही आदि 'कुलांचलवासिनी देविये आकर करती हैं, ऐसा तो अनेक जैन शास्त्रो मे लिखा मिलता है और ये ही दिक्कुमारिये या दिक्कन्यायें कहलाती हैं । किन्तु उनकी तो सख्या सभी करणानुयोगी शास्त्रो मे छ बताई है, न कि छप्पन ? तथा तत्वार्थ राजवातिक, त्रिलोकसार, हरिवश पुराण आदि ग्रन्थो मे लिखा है कि -
१३ वे रूचकद्वीप के मध्यमे बलयाकार रूचक नाम का पर्वत है, उसके कूटो पर निवास करने वाली देवियो का नियोग जिनमाता की सेवा करने का है । इनकी संख्या ४४ लिखी है। इन रूचकवासिनी देवियो द्वारा जिनमाता की सेवा का कथन पं० आशाधरजी ने और प० नेमिचन्द्र जी ने भी अपने २ प्रतिष्ठा शास्त्रो मे किया है। पार्श्वपुराण मे प० भूधरदासजी ने गर्भ