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जैन खगोल विज्ञान ]
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"पर समालोचक जी ने यह आपत्ति की कि - आकाश मे उक्त ज्योतिष्को की चाल इससे विपरीत दृष्टिगोचर होती है । समालोचक जो का ऐसा लिखना ठीक नही है । जैन शास्त्रो मे वृहस्पति-शनिका स्थान ऊचाई मे सत्र ज्योतिषको से ऊपर माना है । इसलिए वे हमे दूर होने के कारण धीमे चलते नजर आते हैं । वैसे गति उनकी अन्यग्रहो से तेज ही है और जो हमने चन्द्रमा की गति सूर्यादि से धीमी लिखी वह भी ठीक
ही लिखी है । प्रत्यक्ष देखते हैं कि
अमावस के दिन सूर्यचन्द्र साथ
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साथ मुस्त होकर साथ-साथ चलते हुये दूसरे दिन सूर्यास्त के वक्त चन्द्रमा सूर्य से पीछे रह जाता है, तभी वह सूर्यास्त के बाद कुछ समय
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रहने का यह अतर अगले- अगले
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तक हमको दिखने लगता है । पीछे दिनो मे उत्तरोत्तर बढता जाता है। इससे साफ जाहिर होता है कि - चन्द्रमा की चाल सूर्य की चाल से धीमी होती है । जैन शास्त्री मे " एक राहु की विमान ऐसा माना है जो हमेशा चन्द्रमा के साथ- साथ "मीचे चलता है 1 किन्तु दोनो को गति समान नहीं है और राहु के विमान का वर्ण श्याम है इसलिए राहु की भांड मे जितना चन्द्रमा का अश आता रहता है उतनी ही चन्द्रमा की गोलाई मे कमी हमको दिखाई देती रहती है और ज्योज्यो चन्द्रमा राहु को आड से निकलता रहता है त्यो त्यो हो उसकी कलायें हमे बढती नजर आती रहती है । वस चन्द्रमा को घटाबढी का यही कारण है और बातें सब काल्पनिक हैं। इसका विशेष खुलासा हमारे लेख में किया है उसे देखें ।
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इसके प्रतिवाद मे समालोचक जी लिखते हैं कि
चन्द्रमा की राह में नित्य कोई राहु होता तो प्रकाश शुद्ध नही मिल सकता । उसका घुधलापन दिखा करता । "
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चन्द्रमा का
आकाश में
उत्तर मे निबेदन है कि - राहु चन्द्रमा से नीचे चलता है । वह