________________ 418 ] [* जैन निबन्ध रत्नावली भाग 2 अस्त हो जाता है वह शुक्लपक्ष कहलाता है। और जिस पखवाडे मे सूर्यास्त के बाद प्रतिरात्रि उत्तरोत्तर बढ़ते हुए एक एक मुहूतं तक चन्द्रमा का उदय नहीं होता बाद मे उदय होकर सारी रात्रि तक चन्द्रमा दिखता रहता है वह कृष्णपक्ष कहलाता है / ऐसा चन्द्रसूर्य की समानगति न होने के कारण से होता है / हमेशा चन्द्रमा सूर्य से धीमी गति चलता है। चलते २हर अमावस को चन्द्रसूर्य साथ हो जाते हैं। इसीलिये अमावम का पर्याय नाम सूर्येन्दुसगम भी है। उस दिन दोनों साथ-२ अम्त होते है। दूसरे दिन शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को चन्द्रमा अपनी चाल से सूर्य से इतना पीछे रह जाता है कि उस दिन जहां उसे अस्त होना है वहां वह सूर्यास्त के 1 मुहर्त वाद मे पहुंचता है इसलिये शुक्ल प्रतिपदा को सूर्यास्त के 1 मुहूर्त बाद तक चन्द्र दिखता रहता है। फिर अस्त हो जाता है। आगे द्वितीया को 2 मुहूर्त, तृतीयाको 3 मुहूर्त बढ़ते-बढते पूर्णिमाको मूर्यास्तके 15 महूर्त बाद तक चन्द्रदर्शन होता रहता है। समरात्रि दिनमे रात्रि 15 मुहूर्त की होती है। अत' तब पर्णिमा को सारी रात्रि मे चन्द्रमा की चांदनी रहती है। उस दिन जिस वक्त पश्चिम मे सूर्यास्त होता है उसी वक्त पूर्व दिशा मे चन्द्रमा अपने उदय स्थान मे आकर उदय हो जाता है। आगे कृष्ण प्रतिपदा को चन्द्रमा चाल मे इतना पीछे रह जाता है कि सूर्यास्त के मुहुर्त बाद मे चन्द्रमा अपने उदय स्थान पर आकर उदय होता है। इसीलिये कृष्ण प्रतिपदा को चन्द्रमा का उदय सूर्यास्त के 1 महत बाद होता है। आगे द्वितीया को 2 मुहूर्त बाद, तृतीया को 3 मुहुर्त बाद, इत्यादि प्रतिदिन एक एक मुहर्त बढते 2 चतुर्दशी को सूर्यास्त के 14 मुहूर्त बाद चन्द्रोदय होता है / आगे अमावस को सूर्यास्त के वक्त ही चन्द्रमा भी अपने अस्त स्थान पर पहुच कर अस्त होकर