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जैन खगोल विज्ञान ]
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होगा तो विदेह क्षेत्र मे रात्रि होगी और विदेह मे रात्रि होगी तो हमारे यहा दिन होगा, किन्तु इसका अर्थ यह नही है कि - हमारे यहा सूर्यास्त होते ही विदेह मे सूर्योदय होने लग जाय या वहा सूर्योदय होते ही यहा सूर्यास्त होने लग जावे। ऐसा तो समरात्रि दिन के वक्त हो सकता है । विषम रात्रि दिन मे तो ऐसा नही हो सकता है । क्योकि जब १८ मुहूर्त का दिन और १२ मुहूर्त की रात्रि होती है तब भरत क्षेत्र मे सूर्यास्त होने के ३ मुहूर्त पहिले ही पश्चिम विदेह मे सूर्योदय हो जायेगा । और पूर्व विदेह मे सूर्यास्त के ३ मुहूर्त पूर्व ही भरत मे सूर्योदय हो जायेगा । मतलब कि उसवक्त भरत मे जो दिन का अन्तिम ३ मुहूर्तात्मक भाग है वही पश्चिम विदेह मे दिन का ३ मुहूर्तात्मक प्रारम्भिक भाग है। तथा पूर्व विदेह मे जो दिन का अतम ३ मुहूर्तात्मक भाग है वही भरत मे दिन का ३ मुहूर्तात्मक प्रारम्भिक भाग है । और जब १८ मुहूर्त का दिन होता है तब सूर्यास्त के तीन मुहूर्त बाद मे पश्चिम विदेह मे सूर्योदय होता है । और पूर्व विदेह मे सूर्यास्त के ३ मुहूर्त बाद मे भरत मे सूर्योदय होता है । कारण कि दिनमान और रात्रि मान मे जो काल का अन्तर है उसमे दिनमान जितना अधिक होगा उसका आधा समय पूर्वक्षेत्र मे सूर्यास्त का शेष रहते ही उत्तर ( अगले ) क्षेत्र मे सूर्योदय हो जायेगा । तथा जितना अधिक रात्रिमान होगा उसका आधा समय पूर्व क्षेत्र मे सूर्यास्त के बाद उत्तर क्षेत्र मे सूर्योदय होगा ।
शुक्ल- कृष्णपक्ष
बढते
जिम पखवाडे मे सूर्यास्त के बाद प्रतिरात्रि उत्तरोत्तर हुए एक एक मुहूर्त तक चन्द्रमा दिखाई देता है, और फिर