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[ ★ जेन निवन्ध रत्नावली भाग २
चाल से उस वीथी को ५६६३६ मुहूर्तो मे पूर्ण कर लेता है अर्थात् पूरा एक चक्कर लगा लेता है ।
प्रकाश और अंधकार
कोई कहते है - "सूर्य जब, मेरु की आड मे आ जाता है तब वह हमे अस्त होता नजर आता है और आड से निकलते वक्त उदय होता नजर आता है । परन्तु ऐसी जैन-मान्यता नहीं है । क्योकि मेरु उत्तर दिशा में है और सूर्य का उदयास्त पूर्व-पश्चिम दिशा मे होता है । दूसरी बात यह हैं कि मेरु की चोचाई जैनागम मे दस हजार योजनो से अधिक नही लिखी है । इसको तो सूर्य अपनी गति से करीब दो मुहूर्त से कम मे ही लाघ सकता है । ऐसी अवस्था मे मेरु की आड़ की बात बनती नही है ।
कोई कहते है - " पृथ्वी नारगी की तरह गोल है और सूर्य उसके नीचे ऊपर चक्कर लगाता है अत उसकी आड मे आने से सूर्य अस्त और आड से निकलने पर उदय होता है । जिससे उदयास्त के वक्त सूर्य पृथ्वी मे निकलता व उसमे प्रवेश होता नजर आता है । और इसी से उदयास्त के वक्त सूर्य का पाव आधा आदि हिस्सा भी दृष्टिगोगर होता है । एक दम पूरा मडल दिखाई नही देता है ।"
किन्तु इस प्रकार की भी जैन मान्यता नही है, इसका कारण यह है कि - यद्यपि सूर्य पृथ्वी से आठ सौ योजन ऊचा है तथापि वह उदयास्त के वक्त हमसे बहुत दूर रहने के कारण पृथ्वी से लगा हुआ प्रतीत होता है भर दूर होने से पहले उसका आगे का भाग नजर आता है, बाद में फिर पिछला भाग भी दिखने लगता है उसी से हमको उस के पाव आध आदि हिस्सा दीखने का भ्रम हो जाता है ।