________________ जैन खगोल विज्ञान ] [ 403 विचरेगा। उस वक्त दोनो सूर्यो के वीच 66640 योजनो का अतर रहेगा। वह इस तरह कि अभ्यतर की प्रथम वीथी जवूद्वीप की अतिम सीमा से 180 योजन भीतर है। अत दोनो तरफ का 180-180 मिताने पर 360 योजन हुए जिन्हे एक लाख योजन प्रमाण जबूद्वीप मे से कम करने पर 66640 योजनो की दूरी अभ्यतर की प्रथम वीथी स्थित दोनो पूर्यों के बीच जाननी चाहिये। ज्योतिष्को का आधार / __ ये पृथ्वी के पिंड स्वरूप ज्योतिष्क घनवात के आधार पर ठहरे हुये है। घनवात गाढी पवन का नाम है। अपने यहा जो पवन है वह तो पतली है जिसे ननुवात कहते है। किन्तु ज्यों ज्यो ऊपर को जाइये त्यो त्यो पवन मे गाढापन का अश बढता हुआ मिलेगा। प्रत्यक्ष मे देखते है कि-जब पतग नीचे को रहता है, तब तक वह गोत खाता रहता है यानी अधिक अस्थिर रहता है। वही ऊपर जाने पर स्थिर-सा हो जाता है। और जो घनवात है वह तनुवात पर ठहरी हुई है। तनुवात को आधार की जरूरत नहीं। ज्योतिष्को का गमन जैन शास्त्रो मे पृथ्वी का भ्रमण नही माना है। ज्योतिप्को का भ्रमण माना है / ये जम्बूद्वीप मे मेरुपर्वत के इर्द गिर्द मेरुसे 1121 योजन दूर रहकर गोलाकार घूमते हैं / मेरु से इतनी दूरी पर भी तारे ही घूमते हैं / सूर्य चन्द्रादि तो मेरु से कम से कम 44820 योजन दूर रहकर घूमते हैं। इनमे चन्द्रमा सबसे मदगति वाला है और सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, और तारे ये सब चन्द्रमा