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[ * जैन निबन्ध रत्नावली भाग २
कैसे रह सकते है ? कदाचित कोई कभी एक सीध मे भी आजाये तो आजाये पर इस सीध की अपेक्षा यहा एक से दूसरे की ऊचाई बताने की विवक्षा नहीं है। यहा तात्पर्य ऐसा समझना कि जो ज्योतिष्क आकाश की जिस सतह मे घूमता है यह सतह अमुक ज्योतिष्क से उतनी ऊची है। जैसे चन्द्रमा से ४ योजन ऊपर नक्षत्र बताये तो इसका अर्थ यह हुआ कि आकाश की जिस सतह मे नक्षत्र विचरते है वह सतह चन्द्रमा की विचरते की सतह से ४ योजन ऊपर है। यह ध्यान मे रखना कि जिनका स्थान जितनी ऊचाई पर बताया है वे सब आकाश मे उस स्थान मे एक ही सतह मे विचरते है।
यह नियम है कि जिस द्वीप मे जितने चन्द्रमा होते हैं उनमे से प्रत्येक चन्द्रमा के साथ निम्नलिखित ज्योतिष्क भी अवश्य होते हैं । यह उसका परिवार कहलाता है
'१ सूर्य, २७ नक्षत्र, ८८ ग्रह ओर ६६६७५ कोडाकोडी तारे" यहा कोडाकोडी से मतलब है ६६६७५ कोड को एक क्रोड से गुणा करने पर प्राप्त होने वालो सख्या। वह सख्या प्रचिलत के अनुसार ६६ सख, ६७ पद्म ५० नील होती है । जबूद्वीप मे २ चन्द्रमा होने से ज्योतिष्को की उक्त संख्या जबूद्वीप मे दूनी समझना चाहिये। जबूद्वीप मे जब कभी एक चन्द्रमा जहा अपने समस्त सूर्यादि परिवार के साथ, आकाश की गोलाई मे विद्यमान होगा, उसी वक्त आकाश की गोलाई मे सामने दूसरा चन्द्रमा भी अपने सूर्यादि परिवार के साथ विद्यमान रहेगा। जबूद्वीप मे जिस समय एक सूर्य अभ्यतर की प्रथम वीथी मे विचरेगा, उसी समय ठीक उसी के सामने दूसरा सूर्य भी उसी प्रथम वीथी मे (आकाश की गोलाई को वीथी कहते है)