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जैन खगोल विज्ञान ]
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किन्तु चन्द्रमा घटता वढता भी दिखाई देता है । उसका कारण यह है कि -- चन्द्रमा के नीचे राहु का विमान विचरता रहता है । यानी राहु के विमान के ध्वजदड से ४ प्रमाणागुल ( उत्सेध की अपेक्षा कुछ अधिक ८३ हाथ ) ऊपर चन्द्रमा विचरता है। राहु के विमान का वर्ण श्याम है अत उसकी ओट में चन्द्रमा का अश आजाने से वह अश हमको दिखाई नही देता है। तथा राहु की गति चन्द्रमा की गति के समान नही है । इसलिये वह चन्द्रमा से जितना आगे पीछे रह जाता है, तदनुसार चन्द्रमा हमको इस धरातल पर घटवढ दीखता है । दोनो की गति मे अतर कुछ ऐसे ढग का रहता है जिससे कृष्णपक्ष मे चन्द्रमा का सोलह भागो (१६ कलाओ ) मे प्रतिदिन एक - एक भाग ढकता रहता है और शुक्ल पक्ष मे प्रतिदिन एक-एक भाग प्रगट होता रहता है । सिद्धात सारदीपक ग्रथ मे लिखा है कि
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शुक्ल पक्ष मे राहु की गति चन्द्रमा से सदैव धीमी रहती है और कृष्ण पक्ष मे सदैव तेज रहती है । इसलिये दोनो पक्षो मे चन्द्रमा घटता बढता नजर आता है । फलितार्थ इसका यह हुआ कि कृष्णपक्ष के अत मे जब चन्द्रमा १६ भागो मे से १५ भाग प्रमाण राहु की ओट में छुप जाता है तो शुक्लपक्ष मे चन्द्रमा की गति से राहु की गति धीमी होने से शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से चन्द्रमा शनं २ ज्यो ज्यो राहु से आगे निकलता जाता है, त्यो त्यो ही वह हर दिन सोलह भागो मे एक-एक भाग अधिक २ बढता हुआ नजर आता है । पद्रहवे दिन वह इतते आगे निकल जाता है कि उसके नीचे राहु की ओट रहती ही नही । वह दिन पूनम की तिथि का होता है । उस दिन चन्द्रमा हमे पूर्णरूप मे दिखाई देता है । फिर उसके अनतर जब कृष्णपक्ष शुरू होता