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जैन खगोल विज्ञान
आसमान मे चमकने वाले सूर्य चन्द्रमा तारे कौन है ? और इनका स्वरूप जैनधर्म मे कैसा बताया है ? ये हमारी इस पृथ्वी से कितने ऊँचे है ? इनका आकार कैसा है ? लम्बाई चौडाई इनकी कितनी है ? इनकी कितनी सख्या है ? ये चलते है ? या स्थिर? और इनके द्वारा किस तरह से रात्रि-दिन बनते हैं ? इत्यादि वर्णन जैसा भी जैनशास्त्रो मे पाया जाता है उसकी भी जानकारी न केवल सामान्य जैनो को किन्तु कितने ही जनविद्वानो को भी नही है और न उनको इतना अवकाश है जो वे इस विषय के सस्कृत-प्राकृत के बडे-२ जैन ग्रन्थो का अध्ययन-मननकर इस विषय को अच्छी तरह हृदयगम कर सके । इसलिये इच्छा हुई कि इस दिशा मे कुछ ज्ञान की सामग्री प्रस्तुत की जावे उसीके फलस्रूप यह लेख लिखा जा रहा है ।
जैनशास्त्रो मे सूर्य चद्रादिको के विमान लिखे है। ये विमान चमकदार पार्थिव परमाणुओ से बने है। इनसे भिन्न २ रगो की प्रभा निकलती है । सूर्य से तपे हुये सोने जैसी, चन्द्रमा से सफेद रग की, राहु-केतु से काले रग की, शुक्र से नई चमेली जैसी, वृहस्पति से मोती की सीप जैसी, बुध सेअर्जुनमय, शनि से तप्त सुवर्णसदृश और मंगल से लाल रंग की प्रभा निकलती है। किन्ही की प्रभा गहरी है और किन्ही की हलकी। सूर्य