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३८२ ] [ * जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
"ओं लोक्यप्रतिष्ठितानां चतुविशतितीर्थ कराणां ऋपभादिवर्द्धमानान्तानां सिद्धाना शरणं प्रपद्य"-ऋग्वेद । अर्थ-त्रैलोक्य प्रतिष्ठित ऋषभ से वर्तमान पयंत जो चौबीस तीर्थकर सिद्ध हैं उनकी में शरण प्राप्त होता है। यजुर्वेद मे कहा है कि -
ओं नमोऽहंन्तो ऋषभो
ऋग्वेद यजुर्वेद के एतद्विपयक कुछ प्रमाण इस निवन्ध में आगे भी दिये है।
८ उर्व, भारवि, भर्तृहरि, भर्तृ मेण्ठ, कठ, गुणाढ्य, व्यास, भास, वोस, कालिदास, वाण, मयूर, नारायण, कुमार, माघ, राजशेखर, आदि महाकवियो ने भी अपने २ काव्यो मै जैन विषयक उल्लेख यत्र तत्र किया है ।
इसके अलावा जैनो का उल्लेख कितने ही शिलालेखो, मूर्तिलेखो और ताम्रपत्रो मे भी काफी तौर से पाया जाता है।
सबसे अधिक शिलालेख दक्षिण भारत मे है। मि० ई० हुलिस, मि० जे०एफ० फ्लीट, और मि० लेविस राईस आदि भिन्न २ पाश्चात्य विद्वानो ने साउथ इण्डिया इन्स्क्रिप्सन, इण्डियन ऐ टिक्केरी, ऐपिग्रॉफ्यिा कर्णाटिका आदि ग्रन्थो मे वहा के हजारो लेखो का संग्रह किया है। ये लेख शिलाओ तथा ताम्रपत्रो पर सस्कृत और पुरानी कनडी आदि भाषाओ मे खुदै
० देखो यशस्तिलक चपू आश्वास ४था पृष्ठ ११३ निर्णयसागर मे मुद्रित ।