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[ * जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
राजा दशरथ ने श्रमणगणों का अतिथि सत्कार किया, ऐसा लिखा है
"तापसा मुंजते चापि घमणा मुजते तथा" भूपण टोका मे श्रमण का अर्थ जनमुनि किया है।
४- शाकटायन के उणादि सूत्र म जिन शब्द व्यवहृत हुआ है"इसिजजिनोडुष्य विभ्योनक"
सूत्र २५६ पाद ३ सिद्धान्त कौमुदी के कर्ता ने इस सूत्र की व्याख्या में "जिनोऽर्हन" कहा है। मेदिनी कोष मे भी जिन शब्द का अर्थ अर्हत-जैनधम के आदि प्रचारक लिखा है। वृत्तिकारगण भी जिनका अर्थ "अर्हत्" करते है। यथा उणादि सूत्र सिद्धान्त कौमुदी । शाकटायन ने किस समय उणादि सूत्र की रचना की थी? यास्क के निरुक्त मे शाकटायन के नामका उल्लेख है । और पाणिनि के बहुत समय पहिले निरुक्त बना है इसे सभी स्वीकार करते हैं। और महाभाष्य प्रणेता पतजलि के कई सौ वर्ष पहिले पाणिनि ने जन्म ग्रहण किया था। अतएव अव निश्चय है कि शाकटायन का उणादिसूत्र अत्यन्त प्राचीन ग्रथ है और उसमे जैनमत का जिकर है। x
५-आज से २४५७ वर्ष पूर्व महावीर स्वामी हुए, जो
x यह पुस्तक सर्वप्रथम वीर निर्वाण स० २४५७ मे प्रकाशित नई थी।