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पीठिकादि मत्र और शासनदेव
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नही देना। उन्हे तो नमस्कार करना जिससे कि उनकी निम्नोन्नन पद की अभिव्यक्ति होती रहे । यह बात शब्द प्रयोगो से जानने में आ रही है । शब्द प्रयोग यो ही नही किये जाते हैं उनमे भी कोई तथ्य समाया हुआ रहता है। जैनाचार्यों के कथन सदा उच्चादर्श को लिये रहते हैं उनसे हीनादर्श अभिव्यजितं करना किसी तरह योग्य नही विद्वानो को इस ओर पं लक्ष्य रखना चाहिये ।
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