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अजैन साहित्य मे जैन उल्लेख"" ]
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म्यायन सहस्रनाम का यह श्लोक दिया गया है -कालनेमिर्महावीर. शूर. शौरि जिनेश्वर' ॥ यह श्लोक महाभारत के अनुशासन पर्व, अध्याय १४६ का ५२वा श्लोक है। जहा वैशम्पायनजी ने विष्णु के सहस्रनाम का प्ररूपण किया है। इसमे विष्णु का एक नाम 'जिनेश्वर' दिया है। (सभवत इसीसे हेमचन्द्राचार्य ने 'अनेकार्थ संग्रह' काड २ श्लोक २६६ मे लिखा है"जिनोऽर्हद् बुद्ध विष्णुषु' ।)
परन्तु साम्प्रदायिकता को यह भी सहन नही हुआ है और किसी ने इसको इस प्रकार बदल दिया है -कालनेमिनिहा वीर शौरि शूरजनेश्वर । देखो-श्रीपाद दामोदर सातवेलकर, औंध (सितारा) से सन् १६३१ मे प्रकाशित महाभारत । तथा गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित महाभारत पृ ६०४३ (सन् १६५८) ।
मूलग्रन्थकार की उदारता का हनन कर अप्रमाणिकता को प्रश्रय देने की पद्धति कहा तक शोभनीय है इस पर विज्ञ पाठक विचार करें।
-मनुस्मृति, यजुर्वेदआगे 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' मे निम्नाकित ३ श्लोक मनुस्मृति से और १ मंत्र भाग यजुर्वेद से उद्धृत किया है
कुलादि बीजं सर्वेषां प्रथमो विमलवाहन । चक्षुष्मान यशस्वी नाभि चन्द्रोऽयप्रसेन जित् ॥१॥ मरुदेवी च नाभिश्च भरते कुल सत्तमा । अष्टमो मरुदेव्या तु नामेति उरुक्रमः ॥२॥