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अजैन साहित्य में जैन उल्लेख ... ]
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अत. स्पष्ट है कि अमरकोष जैन कोष नही है | अमरकोष मे २४ तीर्थंकरो के नाम, जैन सैद्धातिक प्ररूपण, जंन पारिभाषिक शब्द आदि कुछ भी तो जैनत्व सूचक कथन नही पाये जाते । उल्टा, काड ३ विशेष्यनिघ्न वर्ग प्रत्यक्ष स्यादेन्द्रियकमप्रत्यक्षमतीन्द्रिय ||७६ || मे ऐन्द्रियक ज्ञान को प्रत्यक्ष और अतीन्द्रिय ज्ञान को अप्रत्यक्ष बताया है जो तत्त्वार्थ सूत्र (जैन सिद्धात ग्रथ) के ' आये परोक्ष " "प्रत्यक्षमन्यत्" सूत्रो के विरुद्ध पडता है ।
ऐसी हालत मे अमरकोष को जैन बताना मिथ्या मोह मात्र है । निष्पक्ष दृष्टि से यह बौद्ध ही है - सत्य का अनुरोध भी यही है ।
अमरकोष के ब्रह्मवर्ग में जो ब्राह्मण धर्मीय कथन है उससे कोई इसे वैदिक माने तो यह ठीक नहीं है । अमरकोष के पहिले भी कात्य, वाचस्पति, व्याडि, भागुरि आदि के वैदिक कोष ग्रन्थ थे उन्ही मे ब्रह्म वर्ग के अपने विषयानुसार सामग्री ली गई है जो विषय की पूर्णता की दृष्टि से आवश्यक थी। इसी को ग्रथकार ने ग्रन्थारभ मे " समाहृत्यान्य तत्राणि सक्षिप्तः प्रतिसस्कृते " ||२|| श्लोक से व्यक्त किया है। श्वे. जैन हेमचन्द्राचार्य ने भी यह सब ब्राह्मण धर्मीय कथन अपने "अभिधान चिन्तामणि" कोष मे दिया है।
कोष, व्याकरण, गणित, आयुर्वेद आदि विषय ऐसे हैं जो किसी सप्रदाय विशेष से सम्बद्ध नही होते । अगर कोई ऐसा करता है तो वह अपूर्णता को ही प्राप्त होता है उसे लोकप्रियता नही मिलती ।