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अजैन साहित्य में जैन उल्लेख"" ]
[ ३१६ (४) जैन ग्रन्थो मे किसी ग्रन्थ का उल्लेख मात्र होने से ही वह जैन ग्रन्थ नही हो जाता। जैन ग्रन्थो मे तो अनेक जनेतर ग्रन्थो के उल्लेख हैं इस तरह तो वे भी सब जैन ग्रथ हो जायेंगे अत. यह युक्तिवाद भी लचरहै। जनेतर ग्रन्थो मे भी अनेक जनग्रन्थो के उल्लेख है इससे जैनग्रन्थ जैनेतर नहीं बन जाते । सही बात यह है कि-परस्पर विद्वान् एक दूसरे धर्म के लोकप्रिय ग्रन्थो का प्रमाण रूप मे या समीक्षादि के रूप मे उल्लेख करते आये है।
(५) जैन वोधक अक ५ मे जो १२५ श्लोक दिये है उनमे मगलाचरण का एक श्लोक "श्रिय पति पुष्यतु व समीहित "" बताया है। किन्तु यह श्लोक तो मूलत. वादीभसिंह कृत गद्य चिन्तामणि का है। इसी तरह की हालत कुछ अन्य श्लोको की भी है । ऐसा प्रतीत होता है कि-जब अमरकोष को जैन बनान के लिये कथा गढ डाली गई तो किसी जैन विद्वान् ने अमरकोष को स्पष्ट जैन बनाने की दृष्टि से या उसमे जैन कथनो क अभाव की पूर्ति करने की दृष्टि से यह प्रयत्न किया है। इस वक्त उक्त अक हमारे पास नहीं होने से हम उसकी पूरी समीक्षा नहीं कर रहे है। कोई भी विज्ञ पाठक थोडे से विचार से ही उसकी निस्सारता-युक्ति हीनता अच्छी तरह हृदयगम कर सकता है।
से ही सही कर रहे हैं। वास नहीं होने से किया है। इस
अब मैं नीचे ऐसे दो नये प्रमाण प्रस्तुत करता है जिनसे सहज जाना जा सकेगा कि अमरकोष जैन कोप नहीं है.
(१) अमरकोष के टीकाकार प आशाधरजी ने अनगारधर्मामृत अध्याय १ श्लोक २४ के स्वोपज्ञ भाष्य मे पृष्ठ २६ पर