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अजैन साहित्य मे जैन उल्लेख...]
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द्वितीय कांड के ब्रह्म वर्ग मे श्लोक ६ के बाद आठ दार्शनिको मे जैनदर्शन के भी दो नाम दिये हैं देखिये- स्यात्स्याद्वादिक आहेत ॥ पूरे आठ दर्शनो के दो-दो नाम इस प्रकार दिये है -
मीमांसको जैमिनीये, वेदांती ब्रह्मवादिनी । वैशेषिके स्यादौलूक्यः, सौगत शून्यवादिनि ॥१॥ नैयायिक स्त्वक्षपादः स्यात्स्याद्वादिक आर्हतः । चार्वाक लोकायतिको, सत्कार्ये सांख्य कापिलौ ॥२॥
इनमे सभी भारतीय (श्रमण वैदिक) दर्शन आ गये हैं अत ये श्लोक बहुत महत्वपूर्ण हैं फिर भी अनेक सस्करणो मे इन्हे क्षेपक रूप में प्रदर्शित किया है और अनेक मे बिल्कुल निकाल ही दिया है सभवत. यह सब बौद्ध और जैन इन दो श्रमण-धर्मों से विरोध के कारण किया गया है* अन्यथा ये श्लोक मूल ग्रन्थकार कृत हैं, क्योकि हेमचन्द्राचार्य ने भी(१२वी शती मे ) इसी की स्टाइल पर निम्नाकित श्लोक "अभिधान चिन्तामणि" के मर्त्यकाड ३ मे इस प्रकार बनाये है - स्थाद्वाद वाद्याहत स्यात्,
शून्यवादी तु सौगतः ॥५२५॥ नयायिकस्त्वक्षपादो योग.
सांख्यस्तु कापिल ।
*श्लोक १ के चौथे चरण में वौद्ध के और श्लोल २ के दूसरे चरण मे जैन के नाम हैं अगर इन नामो को हटाकर सिर्फ वैदिक दशन के ही नामा रहने से देते तो दोनो श्लोक अधूरे हो जाते अत विवश हो दोनो श्लोको को ही मूल से निकाल दिया है ।