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रात्रि-भोजन त्याग ]
भक्षितं येन रात्रौ च स्वाद्य तेनाप्नमंजसा। यतोऽन्नस्वाययोर्भवो न स्याद्वान्नादियोगतः ॥ ३ ॥
अर्थ-जो रात्रि मे अन्न के पदार्थों को छोडकर पेडा, वरफी आदि खाद्य पदार्थों को खाते है वे भी पापी हैं क्योंकि अन्न और स्वाद्य पदार्थों मे कोई भेद नही है। तथा और भी कहा है कि
दशकीटपतगादि सूक्ष्मजीवा अनेकधा । स्थालमध्ये पतन्त्येव रात्रिभोजनसगिनाम् ॥ ७ ॥ दोपकेन बिना स्थूला दृश्यन्ते नांगिनः क्वचित् । तदुद्योतवशादन्ये प्रागच्छन्तीव भाजने ॥ ६ ॥ पाकभाजनमध्ये तु पतन्त्यैवांगिनो ध्रुवम् । अन्नादिपचनादात्रो म्रियन्तेऽनंतराशयः॥ १०॥ इत्येव दोषसयुक्त त्याज्यं संभोजनं निशि । विषानमिव नि.शेष पापभीतैर्नर सदा ॥१॥ भक्षणीय भवेन्नव पत्रपूगीफलादिकम् ।। कोटाढ्य सर्वथा वरिपापप्रदं निशि ॥ ५४॥ न ग्राह्य प्रोदक धीरविभावर्यां कदाचन । तृटशांतये स्वधर्माय सूक्ष्मजन्तुसमाकुलम् ॥ ५॥ चतुर्विध सदाहार ये त्यजन्ति बुधा निशि। तेषां पक्षोपवासस्य फलं मासस्य जायते ॥ १६ ॥
अर्थ-रात्रि में भोजन करने वालों की थालियो मे डाँस, मच्छर, पतगे आदि छोटे-छोटे जीव आ पडते है। यदि दीपक न जलाया जाय तो स्थूल' जीव भी दिखाई नही पडते और यदि दीपक जला लिया जाय तो उसके प्रकाश से और