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३०२ ] [ * जैन निबन्ध रत्नावली भाग २ ग्रथकारो की कृति समझता हूँ।
आचारवृत्ति मे एक स्थान पर अमितगतिश्रावकाचार के कुछ पद्य उद्धृत है इससे यह कहना कि आचार वृत्ति के कर्ता वसुनदि अमित-गति के बाद हुये है ठीक नहीं अमितगति ने भी तो सस्कृत भगवती आराधना के अत मे वसुनदि का उल्लेख किया है इससे अमितगति और वसुनदि दोनो समकाल मे हुए सिद्ध होते है और सभवतः ये ही वसुनदि आचारवृत्ति के कर्ता है ।
अमितगति ने वि० सं० १०५० मे राजा मुज के समय मे "सुभाषित रत्नसदोह" बनाया है। उस वक्त यदि अमित गतिकी आयु २५ वर्ष के लगभग को मान ले और पूरी आयु उनकी ७५ वर्ष करीब की भी मान ले तो अमितगति का अस्तित्व वि० स० ११०० के आसपास तक ही रहता है और इनके समकालीन होने के कारण इन वसुनदि का अस्तित्व भी ११०० के आसपास ही मानना होगा जबकि श्रावकाचार के कर्ता वसुनादि का कम से कम निकट का समय ऊपर १२वी शताब्दी का दूसरा चरण सिद्ध किया है। ऐसी हालत में दोनो वसुन दि अपने आप ही भिन्न-भिन्न सिद्ध हो जाते है।
इसके अलावा मूलाचार समयसाराधिकार के प्रारम्भ मे टीकाकार वसुनदि ने नरेन्द्रकीति का उल्लेख किया है। जबकि श्रावकाचार के कर्ता वसुनदि ने नरेन्द्रकीर्ति का प्रशस्ति आदि मे कही कोई नाम नही दिया है इससे भी दोनो वसुनदि जुदे-जुदे ही सिद्ध होते है।
प्रभाचन्द्र जो प्रभाचन्द्र प्रमेयकमलमार्तण्ड व न्यायकुमुदचन्द्रोदय