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[ २६१ चाहिये । प्रमाण के लिये देखो त्रिलोकसार की ६८७ आदि गाथायें ।
अढाई द्वीप के नक्शे मे सुधार """
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(२) नक्शे में युग्मधर का स्थान सीताके दक्षिण तटपर, का सीतोद के दक्षिण तटपर और सुबाहुका सीतोदाके उत्तर तटपर बताया है वह भी गलत है । क्योकि ग्रन्थो मे युग्मधर की नगरी का नाम विजया लिखा है । यह नाम शास्त्रो मे सीता के दक्षिण तट की नगरियो मे कही नही है । और बाहु की नगरी का नाम सुसीमा लिखा है यह नाम भी सीतोदा के दक्षिण तट की नगरियो मे नही है ।
तथा सुबाहु की नगरी का नाम वीतशोका लिखा है यह नाम भी सीतोदा के उत्तर तट की नगरियो मे नही है । इससे मालूम होता है कि इन तीनो तीर्थंकरोके जो स्थान नक्शेमे बताये गये हैं वे गलत हैं । और इसी माफक नक्शे मे अन्य चार मेरु सम्बन्धी विदेहो मे शेष १६ विद्यमान तीर्थंकरो के स्थान बताये है वे गलत है। सही स्थान युग्मधर, बाहु, सुबाहु का क्रमश. सीतोदा का उत्तर तट, सीता का दक्षिण तट और सीतोदा का दक्षिण तट है । इसी माफक धातकी द्वीपादि के विदेहो में समझना चाहिये । प्रमाण के लिये देखो कवि द्यानतराय जी कृत धर्म विलास मे 'वर्तमानबीसी दशक' नामक पाठ । इस विषय मे हमारा एक लेख गत कार्तिक कृष्णा ५ के जैन मित्र के अंक मे छपा है उसे देखना चाहिये ।
(३) नक्शे में हैमवत, हरि, रम्यक और हैरण्यवत इन क्षेत्रो के मध्य मे वैताढ्य पर्वत बताया है । वह गलत है, उसकी जगह नाभिगिरि लिखना चाहिये ।