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प्रतिष्ठाचार्यों के लिये एक विचारणीय
विषय मोक्षकल्याणक
आजकल प्रतिष्ठाचार्य भगवान् अहंत देव की प्रतिष्ठा मे मोक्षकल्याण के विधान मे अग्निकुमार देव के मुकुट से उत्पन्न अग्नि में भगवान के दाह संस्कार का दृश्य दिखाते है। ऐसा करना उनका शास्त्र सम्मत प्रतीत नहीं होता है । क्योकि दाह संस्कार के समय में जब भगवान्, अरिहन्त ही न रहेंगे तो उनकी प्रतिमा भी अहंत प्रतिमा कैसे मानी जायेगी। दाह संस्कार भगवान के निर्वाण होने बाद किया जाता है । उस वक्त अरिहन्त अवस्था का लेश भी नहीं रहता है। अरिहन्तदेव के अघातिया कर्मों का नाश होता नहीं और दाह संस्कार उनका अघातिया कर्मों के नाश होने के बाद ही किया जाता है। वर्तः मान में प्रचलित किसी भी प्रतिष्ठाशास्त्र मे दाह-सस्कार का दृश्य दिखाने का उल्लेख नही है। फिर न जाने ये प्रतिष्ठाचार्य मनमानी कैसे कर रहे हैं ?"चूकि भविष्य मे प्रतिमा अरिहन्तदेव की मानी जायेगी, अत. उनका मोक्ष गमन दृश्यरूप मे बताना किसी तरह उचित नहीं है। अर्थात केवल ज्ञानी भगवान् का धर्मोपदेश-विहार आदि बताये बाद उनका दश्यरूप मे मोक्ष गमन न बताकर उनके मोक्ष गमन का मात्र स्मरण कर लेना