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क्या पउमचरिय दिगम्बर ग्रन्थ है . ] . , २७१
अर्थ-सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, , महिंद्र, ब्रह्मलोक, छठवा लातव, कल्प, मागे महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और-बारहवा अच्युत, इस प्रकार १२ कल्प है। ४- "सगरोवि चषकवट्टी चउसठिसहस्सजुवइकयविहवो"
॥ १६८ ॥ पर्व ५ ___ सगर चक्रीके चौसठहजार स्त्रियोका विभव था (पत्र ७ मे भी इतनी ही राणिये लिखी हैं)
इस प्रकारका कथन श्वेतावर सम्मत है। इसीलिये रविपेणके पद्मचरितमे उन्ही पर्वो और उन्ही प्रकरणोमे वदलकर लिखा गया है। जैसे चौदहके स्थानमे १६ स्वप्ने, १२ के स्थानमे १६ स्वर्ग, और चौसठ हजारकी जगह चक्रीके ६६ हजार राणियें। हरिवंशकी उत्पत्तिके सम्बन्धमे भी बदलनेकी चेप्टा की गई प्रेर वह पूरी तौरसे बदला न जासका। जैसा कि पद पचरितके निम्न श्लोकोंसे प्रकट है
जिनेन्द्र दशमे नीते राजातीत्तुमुखश्रुतिः । कौशांच्यामपरोऽवेव वणिजो वीरकश्रुति ॥२॥ हृत्वा तदयितां राजा श्रित्वा काम यथेप्सित । दत्वा दानं विरागाणां पुरे हरिपुरसजके ॥३॥ उत्पन्नौ दंपती क्रीडां कृत्वा रुक्मगिरि ययौ । तत्रापि दक्षिणश्रेण्या भोगमूमिशिधियत् ॥४॥ दयिताविरहांगारदग्ददेहस्तु वीरक. । तपसा देवतां प्राप देवोनिवहसंकुलम् ॥५॥ विदित्वावधिना देवो वैरिण हरिसम । भरतेऽतिपद्यात दुर्गात पापघोरिति ॥६॥