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[* जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
५- बाहुबलीकी राजधानी 'तक्षशिला है। 'पर्व ४' ६-संस्थानका जिकर ही नहीं। ७-रावणकी मृत्यु ज्येष्ठकृष्णा ११ को हुई । 'पर्व ७३ के अतमें' -रावण लक्ष्मण चौथे नरक गये
'पर्व ११८' "पद्मचरितमे" १-विद्य दृष्ट स्वर्ग गया। २-चौदह वर्ष बाद केवलज्ञान हुआ। ३ - सुप्रभाराणीके शत्रुघ्न और केकईके भरतका जन्म हुमा ।
दशरथके चार राणिये थी जिनके चारो पुत्र हुये। ४-नृत्यकारिणीका रूप स्वयंने बनाया । भवनवासिनीका
उल्लेख ही नहीं है। ५-बाहुबलीको राजधानी 'पौतनापुर' है। ६-रामचन्द्रजीके न्यग्रोधपरिमंडल सस्थान लिखा है।
'पर्व ४६ ७-मितीका कोई उल्लेख नही है। ८-तीसरे नरक गये
पर्व १२३' इन्हे आदि लेकर कुछ और भी जहाँ-तहां सूक्ष्म फर्क है जो विस्तारमय से छोडे जाते है। दोनोकी पर्चसख्या भी समान नहीं है । पउमचारियमे ११८ और पद्मचरितमे १२३ पर्व हैं। किन्तु इसके कारण कथनमे रंचमात्र भी भेद नही पडा है। सिफ कथनके विभाग करने में फर्क है। उसमें भी ५५ पर्वतक तो दोनो एक हैं। आगे ५६, ६७, ६६, और १०७, ११२वा ये ५ पव पदमचरितमे बढाये गये है।
ये तो हुई अन्य २ बातें। अब में पाठकोको पउमचरियमे