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क्या पउमचरिय दिगम्बर ग्रन्थ है ] [ २६७
श्रेष्ठावोष्टौ च तावेव यौ सुकीर्तनतिनौ । . न . शम्बूकास्यसभुक्तजलौकापृष्ठसन्निधौ ॥३१॥ । त पिय्य इबइ पहाण मुहकमल जं गुणेसु तत्तिल्लं ।
अन्न बिलं व मण्णइ भरिय चिय दन्तकीडाण ॥२६॥ मुख श्रेयः परिप्राप्तेमुख मुख्यकथारतं । अन्यत्त मलसपूर्ण दंतकीटाकुल बिलम् ॥३३॥ जो पढह सुणइ पुरिसो सामण्णे उज्झमेइ सत्तीए । . सो उत्तमो हु लोए अन्नो पुण सिप्पियकओ व ॥२७॥ वदिता योऽथवा श्रोता श्रेयसां वचसां नर । -पुमान् स एव शेषस्तु शिल्पिकल्पितकायवत् ॥३४॥
ये सब पद्य दोनों ही पथके प्रथम पर्व के है । इनमे जो सस्कृतके है वे पद्मचरितके हैं और प्राकृतके है वे पउमचंरिय के । आगेकै पर्वोका भी प्राय यही हाल है। इतना सादृश्य होते भी कही २ कुछ कथनभेद भी दोनोमे पाया जाता है। जिसकी तालिका बतौर नमूनेके नीचे दी जाती है
"पउमचरियमे" ' १–'विद्य हष्ट्र मोक्षगया' 'पर्व ५' २-अजितनाथको दीक्षा लिये बाद १२ वर्षमे केवलज्ञान हुआ।
'पर्व ' ३-केकईके भरत, शत्रुघ्न दो पुत्र हुये, दशरथके तीन ही
राणिये लिखी हैं-सुप्रभा नामको चौथी राणीका उल्लेख नही है।
'पर्व २५' ४-अतिवीर्यको पकडने के लिये रामलक्ष्मणके नृत्यकारिणीका
स्वाग भवनवासिनी देवीने बनाया। 'पर्व ३७