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भगवान महावीर तथा अन्यतीर्थंकरोके वंश ]
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पद्मपुराण पर्व ५ के प्रारम्भमे ही लिखाहै कि "इक्ष्वाकु वंश, सोमवश, विद्याधर वश और हरिवश ये चार वश प्रसिद्ध हुये । ऋषभदेवका वश इक्ष्वाकु वश था। उनके पोते अर्ककीति से सूर्यवंश चला। बाहुबली के पुत्र सोमयश से सोमवश चला। सूर्यवश और सोमवश मे अनेक गजा हुये जिनकी नामावली यहा दी है।
__ इसी के २१ वे पर्व मे हरिवश की उत्पत्ति शीतलनाथ स्वामी के तीर्थ मे राजा सुमुख के जीव द्वारा हुई लिखी है। इसी हरिवश मे मुनि सुव्रतनाथ हुये। और इसी व श मे राजा जनक हुये । (श्लो ४५) इक्ष्वाकु व श मे दशरथ हुये । (यहा इक्ष्वाकुव शी ऋषभदेव से लेकर दशरथ तक की राजपरपरा का कथन किया है ।)
हरिवश पुराण (जिन्सेन प्रणीत) सर्ग: श्लो ४३ मे लिखा है कि:- "ऋषभदेव के कुटुम्बी इक्ष्वाकु वशी कहलाये । कुरुदेश, के. शासक कुरुवशी। जिनकी आज्ञा उग्र थी वे उग्रवशी, न्याय से प्रजा की रक्षा करने वाले भोजवशी (२) कहलाये।
(२) भोजवश का उल्लेख तत्वार्थ राजवातिक मे 'भाम्लेिच्छाश्च' सूत्र की व्याख्या मे तथा वराग- चरित पृष्ठ ११ मे भी पाया जाता है। हरिवंश पुराण सर्ग ५५ श्लोक ७२ तथा ८२ मे भी राजिमती को भोजसुता लिखा है- इसी से 'चर्चा समाधान' में भी उग्रसेन का दूसरा नाम 'भोज' दिया है। श्वे० नेमिचरित मे भी राजिमती को भोज पुत्री बताया है देखो अनेकात वर्ष १६ किरण ४ पृ. १६३ की टिप्पणी हरिवश पुगण सर्ग ४० श्लोक २० मे भी भोजवश का उल्लेख है।