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कातंत्र व्याकरण के निर्माता कौन है ]
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इन समान पद्यो से यह अनुमान किया जा सकता है कि भावसेन सोमदेव के बाद हुए हैं। ऐसा मालूम होता है कि भावसेन ने कातंत्र को एक जैन कृति ममझ कर ही उस पर टीका बनाई है । यह बात रूपमाला के निम्न पद्यो से साबित होती है
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वद्ध मानकुमारेणार्हता पूज्येन वज्रिणा कोमारे ऋषमेणापि कुमाराणां हितषिणा ।। मुष्टिव्याकरणं नाम्ना कातन्त्र वा कुमारके कालापकं प्रकाशात्मब्रह्मणामभिधायकं ॥ प्रकाशित श' प्रबोधसंपदे श्रयसों पदं । समासानां प्रकरणं भावसेन इहाम्यधात् ॥
(पृष्ठ ३५) चतु. षष्ठिः कलाः स्वीणां ताश्चतुःसप्ततिर्नृ णाम् । आपक. प्रापकस्तासां श्रीमानुषभतीर्थकृत् ॥ तेन ब्राहम् कुमार्ये च कथित पाठहेतवे । कालापक तत्कौमारं नाम्ना शब्दानुशासनम् ॥ यद् वदन्त्यधिय केचित् शिखिन. स्कंदवाहिन । पुच्छान्निर्गतसूत्र स्यात्कालापकमतः परम् ॥
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तन्न युक्त यत केकी वक्तिं प्लुत स्वरानुगम् 1 विमान च शिखीब्र यादिति प्रामाणिकोक्तित ॥ न चात्र मातृकामनाये स्वरेषु प्लुतसग्रह 1 'तस्मात् श्री ऋषभादिष्टमित्येव प्रतिपद्यताम् ॥ ""पृष्ठ ११३”
यहाँ हम यह भी बतला देते हैं कि कातंत्र रूपमाला की अब तक दो आवृत्तिया निकल चुकी हैं । प्रथम आवृत्ति को