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समाधिमरणके अवसर में मुनिदीक्षा
जब किमी ब्रह्मचारी मादि श्रावक की जिस दिन मृत्यु होने को होती है तो प्राय आज-कल उसे नग्न लिंग धारण कराकर और उमका गृहस्थावस्था का नाम भी बदलकर मुनित्व का द्योतक दूसरा ही कोई नाम रखकर पूर्णत उसे मुनिहीं मानलिया जाता है और मृत्यु के बाद उसको उसी नये नाम से पुकारा भी जाता है । परन्तु क्या यह प्रथा वर्तमान मे ही देखने मे आ रही है या पहिले भी थी? और इसका किसी समीचीन आगम से समर्थन भी होता है या नही, इस पर विचार होना आवश्यक है। यह नही हो सकता कि आजकल के साधु स्वैच्छा से जो कुछ कर दें वही प्रमाण मान-लिया जावे।
अतिम समय में सावधक्रियाओ का त्याग कर सब परिग्रहो का छोड देना यह जुदी चीज है और मुनि बनना जुदी चीज है । मुनि बनने के लिये गुरू से दीक्षा लेनी पड़ती है और दीक्षा मे प्रथम ही लोच करना जरूरी होता है जिसे आजकल अतिम समय मे मुनि बनने वाले नही करते है। वे प्राचीन मर्यादा का भग करते हैं। मरण के अवसर मे मुनि बनने वालो को पंच समितियो षट् आवश्यक, स्थिति, भोजन, अस्नान, अदतधावन, आदि मूल गुणो के पालन करने का अवसर ही