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निराकरण पूर्वक जिनागम के रहस्य का उद्घाटन किया है । ६ मे आगम का स्वरूप इस प्रकार वर्णित है
धवल पुस्तक
पेज २५१
जो पूर्वापर विरोधरहित, निर्दोष हो, पदार्थ प्रकाशक हो ऐसे आप्त वचन ही आगम है
पूर्वापर
विरुद्धादेर्व्यपैतो दोष सहते . । द्योतकः सर्वभावना, आप्त व्याहृति रागम. ॥६१||