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जनधर्म मे जीवों का परलोक ]
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नेत्रगोचर नहीं हैं। वहां उत्तम श्रेणी के देवों का निवास है। उससे भी ऊपर 'अहमिन्द्रलोक' है, जहाँ उनसे भी उत्कृष्ट देव रहते हैं । कुछ निम्न श्रेणी के देव अन्यत्र भी रहते हैं । स्वर्ग १६ माने गये हैं। प्रत्येक स्वर्ग के दायरे मे बहुत से विमान होते हैं जिन सबका स्वामी उस स्वर्ग का एक इन्द्र होता है । उन सब विमानो के वासी सब देव उस इन्द्र की आज्ञा मे रहते हैं । अलग-अलग स्वर्ग के प्राय अलग-अलग इन्द्र होते हैं और हर एक स्वर्ग मे बहत से विमान होते हैं। हर एक स्वर्ग मानो एकएक देश है और बहुन से विमान उस देश मे अलग-अलग प्रदेश या नगर हैं। प्रत्येक विमान में अनेक वापिकाएँ', महल और उपवन होते हैं। विमानो की लम्बाई-चौडाई काफी विस्तृत होती है । उन देशो के अलग-अलग राजा अलग-अलग इन्द्र कहलाते हैं। जैसे मनुष्यलोक मे राजा, मन्त्री, पुरोहित, सेना, प्रजा आदि होते हैं, वैसे ही देवलोक मे भी होते है। वहां के राजा को इन्द्र कहते हैं और प्रजा के लोग 'देव' कहलाते हैं । इन इन्द्रादि देवो का शरीर बहुत सुन्दर होता है। उनके शरीर मे हाड, मास, रक्त, धातु. मज्जा, मल, मूत्र, पसीना नहीं होते हैं। उनको निद्रा नही होती. बुढापा नहीं होता और किसी प्रकार का रोग नही होता । उनको प्यास नही लगती । वे खाते कुछ नहीं । बहुत वर्षों में कही कभी भूख लगती है, तो उसी क्षण उनके कण्ठों में अपने आप अमृत झर पडता है । उससे वे तृप्त हो जाते हैं। वहाँ किसी प्रकार का उनको शारीरिक दुख नही होता ह । इसी प्रकार से वहाँ सुन्दर देवियाँ होती हैं जिनके साथ वे देव नाना प्रकार के भोग-विलास करते है। वे देवियां वहां केवल भोग-विलास के लिए ही होती हैं । उनके गर्भ धारण नही होता है । देवो और देवियो की उत्पत्ति वहां किसी स्थान