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चातुर्मास योग
अनेकात वर्ष १ पृ० ३२४ पर एतद् विषयक मुख्तार सा का एक लेख देखो
इस विषय मे प० आशाधरजी ने अनगारधर्मामृत अध्याय ६ में इस प्रकार लिखा है
ततश्चतुर्दशीपूर्वरात्र सिद्धमुनिस्तुती । चतुर्दिक्षु परीत्यात्पाश्चत्यभक्ती रुस्तुतिम् ॥६६॥ शान्तिमक्ति च कुर्वाणैर्वर्षायोगस्तु गृह्यताम् । ऊर्जकृष्ण चतुर्दश्या पश्चाद्रात्रौ च मुच्यताम् ॥६७॥
अर्थ - उसके बाद अपोढ़ शुक्ला चतुर्दशी की रात्रि के प्रथम पहर मे सिद्ध भक्ति और योग भक्ति करके चारो दिशाओ प्रदक्षिणा पूर्वक एक-एक दिशा मे लघुचैत्यभक्ति पढते हुए तथा पचगुरुभक्ति और शातिभक्ति पढी हुए वर्षायोग ग्रहण करे । और इस विधि से कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी की रात्रि के चौथे पहर मे वर्षा योग को समाप्त करे ।
मास वासोऽन्यत्र योगक्षेत्र शुचौ व्रजेत् । मार्गेऽतीते त्यजेच्चार्थवशादपि न लघयेत् ॥ ६८ ॥ नभश्चतुर्थी तद्याने कृष्णा शुक्लोजपचमीम् ।' यावन्नगच्छेत्तच्छंदे कथचिच्छेदमाचरेत् ॥ ६६ ॥ युग्मम्