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* जैन निबन्ध रत्नावली भाग २
श्रेणिक बहुत ही वृद्ध हो चले थे। जब जम्बू ११ वर्ष के थे तब श्रेणिक एक सौ वर्ष के थे। इसी तरह कुछ कथा ग्रन्थो मे जम्बू के दीक्षोत्सव मे श्रेणिक की उपस्थिति बताना भी गलत है। उत्तर पुराण के अनुसार दुबारा गौतम केवली विपुलाचल पर आये थे तब जम्बू ने दीक्षा ली थी किन्तु प्रथम बार जब गौतमकेवली विपुलाचल पर आये थे उस वक्त भी श्रेणिक मौजूद न थे उस वक्त भी कुणिक ही का राज्य था ऐसा उत्तर पुराण मे लिखा है तव जम्बू के दीक्षोत्सव में श्रेणिक को उपस्थित बताना अयुक्त है • जम्बू की दीक्षा के वक्त श्रेणिक की विद्यमानता का उल्लेख हरिवश पुराण और हरिषेण कथा कोष मे भी नहीं है ।
इम निबन्ध में ३ कथा ग्रन्थो का उपयोग किया गया हैउत्तर पुराण, हरिवंश पुगण और हरिषेण कथा कोश का। तीनो ही ग्रन्थ प्राचीन हैं। उत्तरपुराण का रचना काल वि० स०६१० के करीव । हरिवश पुराण का वि० स० ८४० और हरिषेण कथा कोष का त्रि० स०६८८ है।
ॐ दुबारा आने का स्पष्ट कैथन नहीं है । प्रथमयार गौतम आये और कुछ दिन वही रहे तभी ही जेवू ने दुबारा आकर उनकी मौजूदगी मे दीक्षा ले ली।
• वीरकवि कृत-'जवू चरिउ' की सधि १० कडधक १६ में जवू की दीक्षा के वक्त श्रेणिक को मौजूद बताया है।