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अमृत पडनाव- दे. अमितय्य दण्डनायक [प्रमुख. १५९-१६०] अमृतमन्द- दे. अमृतानन्द योगि । अमृतमन्दि- अकारादि वैद्यकनिघंटु (कन्नड) के लेखक, ल० १३०० ई० ।
[ककच.] अमृतपण्डित- दिग. व्रतकथाकोश के कर्ता। [टंक.] अमृतपाल- १. चन्द्र वाड (फ़ीरोजाबाद, उ० प्र०) के चौहान नरेश अभयपाल
का मन्त्री, जिसने चन्द्रवाड (चन्द्रपाठ दुर्ग) में भव्य जिनमन्दिर बनवाया था, १२वीं शती ई० में। वह नगरसेठ हल्लण का पुत्र था, अभयपाल के उत्तराधिकारी जाहड का भी प्रधानमन्त्री रहा -वह जिनभक्त, सप्तव्यसन विरत, दयालु और परोपकारी था । उसका पुत्र सोडू भी राज्यमन्त्री था [प्रमुख. २०८, २४८] २. नाडलाई (राजस्थान) के चाह्मान नरेश रायपाल और रानी मानल देवी का पुत्र, रुद्रपाल का भ्राता, परिवार जैन था, ११३३ ई० में इस परिवार ने यतियों आदि के लिए दान दिया
था। [शिसं. iv. २१८] अमृतप्रभसूरि-योगशतक (हि.) के कर्ता। अमतम्बे कन्ति- तपस्विनी आयिका, जिनके समाधिमरण करने पर उनके पुत्र
पअनन्दि भट्टारक ने, ९७५ ई० में, मैसूर के निकट उनका
स्मारक-स्तंभ स्थापित किया था। [जैशिसं. iv. ९०] अमृतम्य
सरटूरु के राजा तिलकरम के जैन मन्त्री देवण्ण का धर्मात्मा पुष, जिसने ११७५ ई० में मुलगुन्द (धारवाड) की पार्श्वनाथ-बसदि
में समाधिमरण किया था। [जैशिसं iv. :४६] अमृत वाचक- श्वे. यति ने, १७९१ ई० में, सघ की प्रेरणा से, राजगृह मे अति.
मुक्तकमुनि की मूर्ति प्रतिष्ठापित की थी। [टंक.] अमृतविजयगणि- तपागच्छी हीरविजयमूरि के प्रशिष्य, १६४१ ई. में सिरोही
में बिम्ब प्रतिष्ठा की। [प्रमुख. २९४] अमत विमल-श्वे. ने ज्ञानविमलसूरि (१६९१ ई०) को काव्यशास्त्र, न्याय
शास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में शिक्षित किया था। [टंक.] अमृतसागर- दिग. मुनि, ने ११७६ ई० में. कुलोत्तुंग चोल के राज्य में, कुल
तूर के राजा माधवन के मामा (या श्वमुर) की प्रेरणा पर
ऐतिहासिक व्यक्तिकोष