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अमोहिनी- हारीतिपुत्र पाल को भार्या, धर्मात्मा श्रमण धाविका मोहिनी ने अपने पुत्रों पालघोष, पोष्ठघोष तथा घनघोष के साथ मथुरा में, स्वामि महाक्षत्रय शोडास के राज्यकाल में, वर्ष ४० ( = ई० पू० २६) में अहंतपूजार्थ आर्यवती की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी। [ जेसिं. ॥ -५; ए. इ. ॥. १४. २]
अमृतकुमारी बीबी - मुर्शिदाबाद जिले के मोहिमपुर की ओसवाल महिला, जीवन मल तथा मानिकचंद कोठारी को जननी- १८७९ ई० में जगत सेठ गोविन्दचन्द की पत्नी प्राणकुमारी को पुत्र जीवनमल गोद दे दिया, जो गुलाब चन्द कहलाया । [टंक. ]
१. अमृतचन्द्रचार्य, अमृतचन्द्रसूरि या ठक्कुर अमृतचन्द्रसूरि कवीन्द्र, आत्मनिष्ठ सिद्धयोगि एवं आध्यात्मिक सन्त, कुन्दकुन्दाचार्य के सर्वमहान एवं प्रथम ज्ञात व्याख्याकार —समयसार की आत्मख्याति टीका, समयसार कलश, प्रवचनसार- टीका, पंचास्तिकाय टीका, तत्त्वार्थसार, पुरुषार्थसिद्धयुपाय तथा लघुतत्त्वस्फोट अपरनाम शक्तिमणित- ( शक्तिभणित) कोश के रचयिता । संभवतया एक प्राकृत श्रावकाचार और प्रा. ढाढसीगाथा के भी कर्ता हैं । धर्मरत्नाकर (९९८ ई० ) और सुभाषितरत्नसंदोह (९९३ ई० ) से ही पूर्ववर्ती नहीं हैं, वरन् अमितगति प्र. ( ल० ९०० ई०) के योगसार प्राभृत से भी पूर्ववर्ती हैं। अतएव इन महान दिगम्बराचार्य का समय लगभग ९०० ई० है ।
अमृतचन्द्र
२. वह अमृतचन्द्र जो मूल नन्दिसंघ की पट्टावली के अनुसार ९०५-९५८ ई० में हुए संभव है कि न० १ से अभिन्न हों । ३. अमियचन्द, अमियमइन्दु या अमयचन्द, जो अपभ्रन्श प्रद्युम्नafts के कर्त्ता महाकवि सिंह के गुरु थे, उन्ही की आशा से कवि ने ब्राह्मणवाड में बल्लालदेव (होयसल ? ) के राज्य में उक्त ग्रन्थ की रचना की थी । उनके स्वयं के गुरु माधवचन्द्र मलधारि देव थे, समय १२वीं शती ई० ।
४. पुन्नाट गुरुकुल के अमृतचन्द्र, जिनके शिष्य विजयकीर्ति ने ल. ११५४ ई० में एक जिनप्रतिमा प्रतिष्ठित की थी मूर्ति सुल्तानपुर (पश्चिम खानदेश, महाराष्ट्र) में प्राप्त हुई है । संभव है न० ३ से अभिल हों। [जैशिसं. v.
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ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
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