________________
या निर्भयराम, दिग. जैन, खाबड़ायोगी सण्डेलवाल, आमेर जयपुर के कछवाहा राज्यसंस्थापक राजा सोडदेव, ल. ११वीं शती ई०, का विश्वासपात्र मन्त्री एवं सहायक। [ प्रमुख. ३१३] अणवश दे. अमवचन्द्र ।
अनयसिंह- सिन्धुदेश का एक भट्टि सर्दार जिसे बृहत्सरतरगच्छी जिनदत्त
सूरि ने १११८ या ११४१ ई० में जैनधर्म में दीक्षित किया था, और जिसके वंशज अमरिया मोसवाल कहलाये - ऐसी एक अनुश्रुति है । [टंक. ]
अर्थासह श्रीमाल - दिल्ली निवासी पल्वलगोत्रीय रायगोकुलचन्द्र के पुत्र जो १८१८ ई० में आनरेरी मजिस्ट्रेट थे -उनके पुत्र बहादुर सिंह थे । [ टंक]
अमर्यांसह सूरि- वृद्धतपागच्छी मुनिषोष के शिष्य और उन जयतिलक के गुरु, जिनके शिष्य रत्नसिंह सूरि को गुजरात के सुल्तान अहमदशाह ( १४११-४१ ई०) ने सम्मानित किया था- १४३२६० केशि ले. में उल्लेख है। [टंक. ]
अभयसूरि- १. देशीगण पुस्तकगच्छ इंग्लेश्वर बलि के दिगम्बराचायं, जिनके शिष्य श्रुतमुनि भावसंग्रह और परमागमसार (१३४१ ई०) के कर्ता हैं । [ पुजेबासू. ११० १११; प्रवी. . १२८ ] २. उन केशववर्णी के गुरू, जिन्होंने भ. धर्मभूषण की प्रेरणा से, १३०२ ई० में, गोम्मटसार की संस्कृत-कन्नड मिश्रित टीका 'जीवतत्त्व प्रदीपिका' रची थी। [ पुर्जवासु. ८९ ]
२. उपनाम वादिसिंह, जो अभयचन्द्रसूरि के कनिष्ट सधर्मा श्रुतकीर्ति के प्रशिष्य मौर चारुकीति के शिष्य थे - इनके सधर्मा सिनार्य और पंडितदेव ( स्वर्ग १३९० ई०) थे । [ जंशिस. i. १०५]
१. हरिवंश पुराण (७८३ ई०) में प्रदत्त उसके कर्ता जिनसेनसूरि को गुरुपरम्परा में उल्लिखित अभयसेन प्र. जो सिद्धसेन के गुरु थे, ल. ६०० ई० ।
अमयसेन
२. उसी गुर्वावली के अभयसेन द्वि. उक्त सिद्धसेन के शिष्य ये और भीमसेन के गुरु थे, ल. ६५० ई० ।
ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
४७