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अमयपाल
अजयपाल
अभयमत्र
१७. लघुस्वपन के कर्ता, जिसकी टीका भावशर्मा ने की है। [ शोधांक. ४६ पृ. २२१]
१८. हलेबिट के कन्नड शि.ले., १२६५ ई० में उल्लिखित अभयनन्दि जो शुभचन्द्र के शिष्य और उन अवहनन्दि सिद्धान्ति के गुरु थे जो उक्त शि. ले. में उल्लिखित दान प्राप्त करने वाले माघनन्दि से लगभग एक दर्जन पीढ़ी पूर्व हुए थे । [ जैशिसं. iv ३४२,३७६ ; v. १२७]
राजा कीर्तिपाल का पुत्र और नाडोल नरेश कल्हण का अनुज, इस धर्मात्मा जैन राजकुमार ने, ११७६ ई० में, माता महिबल देवी तथा भाई लखनपाल सह श्री शान्तिनाथोत्सव के लिए प्रभूत दानादि दिये थे । [टंक; कंच. २२; ए इ xi. पृ. ४९-५० ] herorist गुणभद्रसूरि के शिष्य ने बीकानेर प्रदेश में १४५८ तथा १४९० ई० में कई जिनप्रतिमाएं प्रतिष्ठापित की थी। [ नाहटा ४९, ६२. १७८२]
अभयराज संघवी- दिग. जैन गगंगोत्रीय अग्रवाल संघपति भगवानदास के पुत्र तथा 'समवसरणपाठ' आदि के रचयिता पं० रूपचन्द्र के अग्रज ।
[टंक. प्रवी. १०७, भू० ७६ ]
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उपरोक्त लगभग डेढ़ दर्जन गुरुओं में नं ० १ से ७ तक अभिन रहे हो सकते हैं ( समय ल. ९०० ई० ) सभव है नं० १२ भी । नं० ८, ९, १०, १३ ( समय ल. १०२५-५० ई०) भी परस्पर अभिन्न रहे हो सकते हैं । नं० ११, १५, १६ एवं १७ अनुसंधानीय हैं । न० १७ की तिथि ल. १००० ई० है' और नं० १४ की ल. १५५० ई० है I
चन्दवाड का चौहानवंशी जैन राजा ( १२वीं शती ई० ) - उसके जैन मन्त्री सेठ अमृतपाल ने भी नगर में एक भव्य जिनालय बनवाया था । [प्रमुख २०८,२४८] - अभयपाल राजा भरतपाल का उत्तराधिकारी या, इसीवंश का अभयपाल द्वि (ल. १३५० ई०) सारंग नरेन्द्र का उत्तराधिकारी था - सोमदेव जंन उसका मन्त्री था । [ भाइ ४५६ ]
ऐतिहासिक व्यक्तिकोष