________________
अनमानक-त्रिभुवनगिरि का शूरसेनवंशी जैन नरेश (१५५. बी
पाल के पुत्र त्रिभुवन पाल का प्रपौत्र, विजयपाल का पौष, दूर.
पाल का पुत्र। [कंच. २७] मालवा पासवन-जो गुणसेनदेव का शिष्य था, और जिसके भतीजे पाचन
बीपालन ने मास के कीलक्कुडि स्थान में जिनप्रतिमा प्रतिष्ठित कराई बी-ल. ७वीं शती ई. में [षिसं. iv. ३३.३८] विजयनगर मरेश हरिहर वि.के शासनकाल के १३९७ ई. के लि.ने.के अनुसार राजा के एक बन्यु इम्माड पुक्क का जैन धर्मा
बबंदी पुत्र अवन्त क्षमापति । [जैचिसं.५.१८२] मनन्तषि- कनड कवि, भ. भीलसागर बोर पंडिताचार्य के शिष्य, १७७८
ई. में 'बेखगोल-गोम्मटेश्वर चरित' की रचना की थी, जिसमें अनेक ऐतिहासिक तथ्यों एवं घटनाओं का भी उल्लेख है, जिनमें
से कई प्रमपूर्ण है। [कच; शिवं. भू. २७, ४८] अन्लोड-जिसके पुत्र बादिसेट्टि ने माविनकेरे (मैसूर प्रदेश) के चन्द्रनाथ
चैत्यालय में, ल, १४वीं शती ई० में, एक मनोश चतुर्विंशति
तीर्थकर प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी। [शिसं. iv. ४१९] मसन्तीति- १. मूलनन्विसंध की पट्टाबलियों में न० ३३ पर, उज्जनी-पट्ट
के अन्तर्गत, उल्लिखित बाचार्य, पट्टाली प्रत्त समय ७०८७२८ ई., देशभूषण एवं धर्मनंदि के मध्य. [सिभा.i.४,७५. 0.; मोपांक-1] २. प्रामाण्यभङ्ग नामक ग्रन्थ के कर्ता (स. ७५० ई.)- अनन्तवीर्य ने नवमी सिडिविनियर टीका में इनका उल्लेख किया है। [शोषांक-३] ३. बृहसमिति एवं लघुसमिति के का, जिनके उल्लेख एवं उद्धरण बावि शान्तिसूरि के बंगकंवार्तिक, बमयदेवसूरि के बावमहार्णव, प्रभाचन्द्र के न्यायकुमुदचन्द्र बोर वादिरान के न्याय-विनिश्चयविवरण में प्राप्त होते है -ये सब आचार्य प्राय: ११वीं शती.के हैं। इन अनन्तकीति का अनुमानित समय नौवीं शती ई. है। [थोषांक-1]
२४
ऐतिहासिक माहियोग