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४. वादिराज (१०२५ ई०) द्वारा जीवसिद्धिकरण के कर्ता के रूप में स्मृत अनन्तकोति--संभवतया यह स्वामिसमन्तभद्र (२री सती ई०) कृत जीवसिद्धि की टीका होगी । धर्मसिद्धि, प्रमाणनिर्णय आदि के कर्ता अनन्तकीर्ति भी संभवतया यही है, और संभव है कि न० ३ से अमिन हों । [शोधांक-३]
५. मालव के शान्तिनाथदेव से सम्बद्ध बलात्कारगण की चित्रकूट आम्नाय के मुनिचन्द्र सिद्धान्तदेव के शिष्य अनन्तकीर्तिदेव, जिन्हें. १०७५ ई० के लगभग, केशवदेव हेगडे मे भूदान आदि दिया था । [जैशिसं. ii. २००; एक. vii. १३४]
६. दिग. माथुरसंत्री अनन्तकीर्ति, जिनने ११४७ ई० में बीकानेर प्रदेश में एक जिनप्रतिमा प्रतिष्ठित की थी । [ बीका. लेसं. २४५७; शोषांक-३]
७. अनन्तीति मुनि तपसाबक, जो होयसल नरेश बोर बल्लालदेव वि. के दण्डनायक भरत की धर्मात्मा पत्नि जक्कब्बे के गुरु ये - इस महिला ने १९९६ ई० में समाधिमरण किया था । [जैशि. iii. ४२७; एक vii. १९६; प्रमुख. १५८ ]
८. काजूरगण की पट्टावली में देवकीर्ति के पश्चात और धर्मकीर्ति के पूर्व उल्लिखित अनन्तकीर्ति, जो १२०७ ई० में बान्धव नगर की शान्तिनाय वसति के अध्यक्ष थे । [शोधांक-३: प्रसं १३३; जैशिसं. iv. ३२३]
९. देशीगण - पुस्तकगच्छ के मेषचन्द्र जैविद्यदेव (स्वनं. ११९५ ई०) के प्रशिष्य, आचारसार ( ११५४ ई०) के कर्ता बीरनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्ती के शिष्य, रामचन्द्र मलधारि के गुरु और शुभचन्द्र अध्यात्म (स्वर्ग. १३१३ ई०) के प्रगुरु अनन्तकीर्ति मुनिप - संभवतया न ० ७ से बनिश हैं। [जैशिसं . ४१ ] १०. काष्ठासंघ- माथुरगच्छ पुष्करमण के प्रतिष्ठाचार्य अनन्तकीर्ति, जो चन्द्रवाड (फीरोजाबाद, उ० प्र०) के १३७१ ई० के कई प्रतिमालेखों में उल्लिखित हैं। यह श्रेयांससेनके शिष्य और कमलकीति (१३८६ ई०) के गुरु थे । [शोधांक-३; जैसिना. xiii, २, १३२; प्रमुख. २४८ ]
ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
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