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________________ एक सुन्दर पाश्व-विनालंब भी बनवाया था जिसके प्रतिष्ठाचार्य जिनहर्षसूरि थे। [टक; टाड] साह अबराज श्रीमान, चौवहगुणस्थान-वर्ग (गब-पडा) के रचयिता (१७वीं शती ई.), संभवतया विषापहारस्थोष-टीका व एकीभावस्तोत्र, कल्याणमन्दिर तथा भक्तामर स्तोत्र' की भाषा टीकामों के भी कता यहीं है, दिन. पंडित । [कंच १५८, १७०) या अक्षराम-२० अक्षयराम अवापराम- मराम- दे.बसयराम अनि बोमब-ने १५३९१० में श्रवणबेलगोल के त्यागव-ब्रह्मा-जिनालय के लिए स्थायी भूदान आदि दिए थे। दानी श्रावक कम्यय्य का पिता। [मेज ३४८; प्रमुख २७४] बगरमच्चायत- अगरणी, अमर मेहता, या मेहता अगरचन्द बच्छावत, अकबर-जहांगीर कालीन बीकानेर के सुप्रसिद्ध कर्मचन्द बच्छावत के वराज पृथ्वीराज का ज्येष्ठ पुत्र था (जन्म १७२० ई.), उदयपुर मेवाड़ के राणा अरिसिंह वि. ने उसे मांडलगढ़ का दुर्गपाल नियुक्त किया, शीघ्र ही राणा का प्रमुख मन्त्री बन गया, उसके उत्तराधिकारियों, हमीरसिंह द्वि. और भीमसिंह के समय में राज्य का प्रधान बना रहा, कलम और तलवार दोनों का धनी था, अनेक युद्धों में भागलिया। लगभग बाधी शती तक राज्य की निष्ठापूर्वक सेवा करके १८००६. में, ८० वर्ष की परवावस्था में इस कुशल प्रशासक, सुदक्ष राजनीतिज्ञ, प्रचण्ड शूरवीर और स्वामिभक्त न राजपुरुष का स्वर्गवास हुआ। उसका अनुज हंसराज और पुत्र मेवाड़ राज्य के प्रतिष्ठित राज्यमन्त्री रहे। [प्रमुख. ३२७-८ टोकदारकर. २२५-२२७) अगरवी- दे. अगरवन्द बच्छावत अपरमेहता- दे. अगरचन्द बचायत मगरम्य- गंगनरेश एरेपगंगनीतिमार्ग प्र. (८५३-७.६०)का स्वामिभक्त ऐतिहासिक बक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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