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गोव---
औधनग्य
ओजण श्रेष्ठि
जिनने, वर्धमान (१५४२ ई०) के उल्लेखानुसार गेहसोप्पेनगर के मध्य में विराजित भव्य नेमि - विनालय पूर्वकाल में वनबाया था। [ प्रसं. १३७] एक शि. ले. मैं ओजण के प्रपौत्र और कल्लपश्रेष्ठि एवं मावाम्बा के पुत्र अजनश्रेष्ठि द्वारा tator aratsafe के ललितकीर्ति के शिष्य देवचन्द्रसूरि के उपदेश नेमि जिनकी प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी । [जंशिसं. iv. ५३८]
कनडकवि, कव्विगरकाव्य (११७० ई०) का प्रणेता । होयसल नरसिंह प्र० एवं बल्लाल द्वि. द्वारा पराजित एक प्रमुख शत्रु राजा । [जैशिसं . . ९०, १२४, १३० ]
अपरनाम श्रीविजयपंडितदेव जो द्रविड़गण-नन्दिसंच-मरंगला - न्वय के आचार्य कनकसेन वादिराज के शिष्य थे, पुष्पसेन, दयापाल और बादिराज (१०२५ ई०) के ज्येष्ठ सघर्मा थे, बोर अजितसेन वादी सिंह, श्रेयांसदेव, कुमारसेन तथा कमलभद्र के गुरु, और मल्लिषेण मलपारि (स्वर्ग. ११२६ ई०) के प्रगुरु थे । [जैशिसं. 1. ५४; प्रमुख. १७५]
ओडेयमसेट्ठि — ने स्वगुरु अनन्तवीर्यदेव के उपदेश से जिनप्रतिमा को गलि में प्रतिष्ठापित की थी। [जैशिसं. iv. ६१६]
ओडन- ओष ओडमरस- हुमच का जैनधर्मी सान्तर नरेश आचार्य अजितसेन बादसिंह का गृहस्थ शिष्य, वीरदेव सान्तर और कञ्चलदेवी का पुत्र, चट्टनदेवी का पोष्यपुत्र, तेल, गोग्णि एवं बम्मं शान्तरों का भाई । इसका अपरनाम विक्रम सान्तर था, प्रतापी धर्मात्मा नरेश बा, ल० १०७७०८७ ६०
[शिसं.
iii. ३२६; प्रमुख. १७२, १७४ ]
ओडव्य-
ओरोप
आर्य बोच, मथुरा के वर्ष २० (सन् १० ई०) के जैनले. में उल्लिखित कोट्टिबगण ब्रह्मदा सियकुल- उच्च नागरीशाला के ares referent के शिष्य और आदत के गुरु । [वि. ii. ३१] दे. ओहनन्दि ।
ओडेमदेव
ओहम-मोमरस- दे. मोड
ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
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