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प्राचीन केरल का जिनधर्मी चेर नरेश, ल.१००००। उसके बंश में कई पीढ़ियों तक जैन धर्म की प्रवृत्ति रही-यम-यक्षियों
को भक्ति विशेष रही। [रेसाई.४४, ४५, ७८] एलेवरंग- या एरेवबेडंग, राष्ट्रकूट इन्द्र चतुर्ष (मृत्यु ९८२०) को
उपाधि। [शिसं. i. ५७; ii. १६४]
ऐष
ऐचिष्टि
जैनधर्मावलम्बी हैहयवंशी राजा, लोकप्र.का पौत्र, बानेग प्र. का पुत्र, बिज्ज प्र.का पिता, ल. ११०० ई. । [देसाई. २१५, ३.६] -इस नाम के इस वंश में और राजा हुए प्रतीत होते हैं। दे.ऐचभूप एवं एचरस । जिसके पुत्र रामिसेट्टि ने को एरम्बर्गेवाड का सेट्टिगुत्त (प्रधान श्रेष्ठि) या और मूलसंध-बलात्कारगण के कुमुदेन्दु (आचार्य कुमुदचन्द्र) का गृहस्थ शिष्य था, ल. १२०० ई. में समाधिमरण किया था। [शिसं. iii. ४४४]
दे. खारवेल। [प्रमुख.५३-५९] दिग., प्राकृत ग्रन्थ सम्यक्त्व प्रकाश के रचयिता. ल.११००ई०। पलाशपुर का महावीर भक्त राजकुमार -महावीरकालीन । [प्रमुख. २०-२१]
ऐलवारवेल-
ओ
बोला
मोनारिक
श्रावक भगिनी (साध्वी), मोखारिका की पुत्री, संभवतया शकपहलव मादि विदेशी जातीय जैन महिला, प्राचीन मथुरा के ल. दूसरी शती के शि. ले. में उल्लिखित। [शिसं. ii. c८] की पत्नी और दमित्र की पुत्री दत्ता ने १६२६. में मथुरा में वर्षमान प्रतिमा स्थापित की थी। [शिसं. iv. १५] को पुत्रियों बोखा और उमतिका ने मथुरा में, वर्ष २९९ या ९९ में महावीर प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी। [क्षिस. ii. ८८]
मोबारित
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ऐतिहासिक व्यक्तिकोष